tag:blogger.com,1999:blog-3454215158053020851.post6445581419920749900..comments2023-10-12T08:03:00.002-07:00Comments on कुमार अम्बुज: रहने की कोशिश कर सकता हूंकुमार अम्बुजhttp://www.blogger.com/profile/02635510768553914710noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3454215158053020851.post-65627197555311342872010-09-23T03:30:45.120-07:002010-09-23T03:30:45.120-07:00पहले अनुनाद पर शिरीष जी कविता "जीवन रहेगा &qu...पहले अनुनाद पर शिरीष जी कविता "जीवन रहेगा " और फिर ये कविता ....<br /><br />"जीवन ऐसा है कि धूप में रहना ही पड़ता है<br />अब मैं तेज धूप में हूं और रहना इस तरह जैसे ओस के संग रह रहा हूं"<br /><br />बहुत उम्दा !!अमितhttps://www.blogger.com/profile/14228522614377198712noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3454215158053020851.post-85429244743211559252010-09-19T23:17:09.471-07:002010-09-19T23:17:09.471-07:00हर कोई धूप के भीतर ओस को रहते देख नहीं सकता
इस तरह...हर कोई धूप के भीतर ओस को रहते देख नहीं सकता<br />इस तरह मैं हूं भी और नहीं भी हूं<br />आप मुझे सुविधा से, मक्कारी से या आसानी से नजरअंदाज कर सकते हैं।<br />कुमार साब ,<br />प्रणाम !<br />साधुवाद इक समय के बाद आप को पढ़ा ,<br />सादर !सुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3454215158053020851.post-15395921904215677962010-09-16T08:46:03.842-07:002010-09-16T08:46:03.842-07:00आपकी पिछली कविताओं से तुलना की जाये तो इसे एक कमज़...आपकी पिछली कविताओं से तुलना की जाये तो इसे एक कमज़ोर कविता कहूँगा. काफ़ी गद्यात्मक और निबंधात्मक. लेकिन यह कहने में यह याद रखना ज़रूरी है कि इस बीच आप कहानी के धूल भरे मैदानों पर विचरते रहे. फिर भी कविता के संसार में बार बार आपका लौटना हमेशा बाल देता है. महेश वर्मा, अंबिकापुर छत्तीसगढ़.महेश वर्मा mahesh verma https://www.blogger.com/profile/04275583629021409585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3454215158053020851.post-61458299262872553392010-09-16T01:18:28.168-07:002010-09-16T01:18:28.168-07:00ओस की तरह रह पाना ...और वह भी धूप मे ! अद्भुत ! आप...ओस की तरह रह पाना ...और वह भी धूप मे ! अद्भुत ! आपके कहन का ढंग बेहद सुंदर है ... <br /><br />''और ये मुश्किलें जो घूरे की तरह इकट्ठा हैं मेरे आसपास<br />दरअसल यह सब मेरे ओस जैसा होने की मुश्किलें भी हैं'' ......... <br />कितनी बारीकी से लिख दिया आपने बड़ी -बड़ी बातें !सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3454215158053020851.post-78570492915941964392010-09-15T11:16:07.203-07:002010-09-15T11:16:07.203-07:00अच्छी बात...ठोस ईरादों की तरल सघनता...सुंदरतम पंक...अच्छी बात...ठोस ईरादों की तरल सघनता...सुंदरतम पंक्ति-'हर कोई धूप के भीतर ओस को रहते देख नहीं सकता' <br /> ---सार्थक प्रस्तुतिउत्तमराव क्षीरसागरhttps://www.blogger.com/profile/16910353784499813312noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3454215158053020851.post-89995680527320704092010-09-15T10:08:49.732-07:002010-09-15T10:08:49.732-07:00न तो हम आपको सुविध से नजरअन्दाज कर पा रहे हैं, न म...न तो हम आपको सुविध से नजरअन्दाज कर पा रहे हैं, न मक्कारी से न ही आसानी से....<br /><br />कोई और तरीका सुझाइए<br /><br /><br />सटीक और ठोस रचनाalka mishrahttps://www.blogger.com/profile/01380768461514952856noreply@blogger.com