हम कहानी क्यों कहते हैं
यह अनुवाद वरिष्ठ कवि, मित्र आग्नेय जी के लिए
लाइजेल म्यूलर
1
क्योंकि हमारे पास कभी पत्तियॉं हुआ करती थीं
और सीलन भरे दिनों में
टीस उठती थी हमारी माँसपेशियों में
जो अब बहुत तकलीफदेह है, तबसे जब हमें
मैदान में विस्थापित कर दिया गया
और क्योंकि हमारे बच्चे विश्वास करते थे
कि वे उड़ सकते हैं, एक आदिम इच्छा हमारे भीतर बनी रही
तबसे जब हमारी बाहों की अस्थियॉं
तंतुवाद्य के आकार की थीं और साफ टूट गईं थीं
उनके पंखों के नीचे
और क्योंकि हमारे पास फेंफड़े होने से पहले ही
हम जानते थे कि यह तलहटी से कितना दूर है
हम खुली ऑंखों से तैरे
जैसे सपनों के रंगीन दुपटटे किसी चित्र दृश्य में तैरते हैं
और क्योंकि हम जाग गए थे
और सीख चुके थे बोलना
2
हम गुफाओं में आग के पास बैठे
और क्योंकि हम गरीब थे, हमने
एक विशाल खजाने की एक कहानी बनायी
जो केवल हमारे लिए ही खुलेगा
और क्योंकि हम हमेशा ही पराजित हुए
हमने असंभव पहेलियों का आविष्कार किया
जिन्हें केवल हम ही हल कर सकते थे
और ऐसे राक्षस जिन्हें केवल हम मार सकते थे
ऐसी स्त्रियां जो किसी और को प्यार नहीं कर सकती थीं
और क्योंकि हम जीवित बने रहे
बहनें और भाई, बेटियॉं और बेटे,
हमने ऐसी अस्थियों को खोजा जो धरती के
अँधेरे कोनों से जीवित हो सकीं
और पेड़ की सफेद चिडि़यों की तरह गीत गाये
3
क्योंकि हमारे जीवन की कहानी ही
हमारा जीवन हो गई
क्योंकि हममें से हर कोई
एक ही कहानी कहता है
लेकिन अलग तरह से कहता है
और हममें से कोई भी
एक तरह से दुबारा नहीं कहता है
क्योंकि नानी मकड़ी की तरह किस्से बुनती है
कि अपने बच्चों को मंत्रमुग्ध कर सके
और दादा हमें समझाना चाहते हैं
कि जो कुछ भी घटित हुआ
वह उनकी वजह से ही घटित हुआ
और हालॉंकि हम बेतरतीबी से सुनते हैं
एक कान से सुनते हैं,
हम शुरू करेंगे हमारी कहानी इस शब्द से-
'और'।
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
सोमवार, 16 अगस्त 2010
लिखे जाने की आवाज का संगीत
छोटे से अंश का एक अनुवाद प्रस्तुत है, जिसने मुझे अपनी परिधि में ले लिया है।
मैं हमेशा महसूस करता हूं कि शब्द मेरे शरीर में से निकलकर आते हैं, महज दिमाग में से नहीं। मैं कलम से कागज पर इस तरह सामान्य लिपि में कुछ जोर से लिखता हूं कि कलम से कागज पर लिखे जाने की आवाज आती है। मैं शब्दों को लिखे जाने की आवाज सुनता हूं। गद्य लिखने और वाक्य बनाने के इस यत्न को मैं अपने मस्तिष्क में बज रहे संगीत की संगति में पकड़ता हूं। यह सब बहुत श्रमसाध्य है, लिखना, लिखना और पुनर्लेखन कि उस तरह संगीत को प्राप्त कर पाना जैसा कि आप चाहते हैं। यह संगीत एक भौतिक शक्ति है। आप न केवल किताबें भौतिक रूप से लिखते हैं बल्कि उन्हें पढ़ना भी भौतिक क्रिया ही है।
भाषा की लय कुछ ऐसी होती है कि वह हमारे अपने शरीर की लय से संगति बैठाती है। एक उत्सुक पाठक किताब में उन अर्थों की खोज करता है जिन्हें उच्चरित नहीं किया जा सकता, वह उन्हें अपने शरीर में ही खोजता है। मैं सोचता हूं कि अधिकांश लोग गद्यसाहित्य को लेकर यही नहीं समझ पाते हैं। कविता का सांगितिक होना माना ही जाता है लेकिन लोग गद्य को इस तरह नहीं समझते हैं। वे पत्रकारिता को पढ़ते हुए तथ्यात्मक,कामकाजी,सूचनात्मक वाक्यों के, सतही विन्यास और चीजों के बेहद आदी हो चुके होते हैं।
- पॉल ऑस्टर (उपन्यासकार) के साक्षात्कार का एक अंश
'द बिलीवर' पत्रिका के फरवरी 2005 के अंक से, साभार।
मैं हमेशा महसूस करता हूं कि शब्द मेरे शरीर में से निकलकर आते हैं, महज दिमाग में से नहीं। मैं कलम से कागज पर इस तरह सामान्य लिपि में कुछ जोर से लिखता हूं कि कलम से कागज पर लिखे जाने की आवाज आती है। मैं शब्दों को लिखे जाने की आवाज सुनता हूं। गद्य लिखने और वाक्य बनाने के इस यत्न को मैं अपने मस्तिष्क में बज रहे संगीत की संगति में पकड़ता हूं। यह सब बहुत श्रमसाध्य है, लिखना, लिखना और पुनर्लेखन कि उस तरह संगीत को प्राप्त कर पाना जैसा कि आप चाहते हैं। यह संगीत एक भौतिक शक्ति है। आप न केवल किताबें भौतिक रूप से लिखते हैं बल्कि उन्हें पढ़ना भी भौतिक क्रिया ही है।
भाषा की लय कुछ ऐसी होती है कि वह हमारे अपने शरीर की लय से संगति बैठाती है। एक उत्सुक पाठक किताब में उन अर्थों की खोज करता है जिन्हें उच्चरित नहीं किया जा सकता, वह उन्हें अपने शरीर में ही खोजता है। मैं सोचता हूं कि अधिकांश लोग गद्यसाहित्य को लेकर यही नहीं समझ पाते हैं। कविता का सांगितिक होना माना ही जाता है लेकिन लोग गद्य को इस तरह नहीं समझते हैं। वे पत्रकारिता को पढ़ते हुए तथ्यात्मक,कामकाजी,सूचनात्मक वाक्यों के, सतही विन्यास और चीजों के बेहद आदी हो चुके होते हैं।
- पॉल ऑस्टर (उपन्यासकार) के साक्षात्कार का एक अंश
'द बिलीवर' पत्रिका के फरवरी 2005 के अंक से, साभार।
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