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रविवार, 26 सितंबर 2010

हर शहर में एक स्‍त्री का स्‍थापत्‍य

कुछ शहरों को याद करते हुये


अब रातें अपना काम करेंगी
झरनों की तरह मेरे ऊपर गिरेंगी
और मुझे भटकायेंगी जैसे बतायेंगी
कि यह शहर तुम्हारे लिये नया है
कभी-कभी नीम या पीपल दिखेगा दिलासा देता
फिर गलियाँ धीरे-धीरे अपनायेंगी और मेरी नसों में समा जाऍंगी

कहीं कोई पोखर, घाटियाँ, बिखरे हुये से पेड़
पुल, कोलाहल से भरे चौरस्ते और उदासी
झाड़ियाँ, मैदान, एक तरफ खिले हुये फूल
गिरती ओस और टूटती पत्तियाँ
हर शहर में एक स्त्री का स्थापत्य छिपा है

इस साँवली सड़क ने मुझे बाँहों में भर लिया है
तारों की परछाइयाँ मुझ पर सुलगती गिर रही हैं
मेरे माथे पर उनके चुंबनों की बौछार है
जिनकी चमक झील में गिरकर उछलती है

छूटता ही नहीं शहरों से मेरा प्रेम
उनके भीतर से उठती है मारक पुकार
वही है जो बार-बार मुझे उनकी तरफ लिवाये जाती है
और उन्हें किसी मादक प्रेम की तरह
अविस्मरणीय बनाती है।
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