कुछ शहरों को याद करते हुये
अब रातें अपना काम करेंगी
झरनों की तरह मेरे ऊपर गिरेंगी
और मुझे भटकायेंगी जैसे बतायेंगी
कि यह शहर तुम्हारे लिये नया है
कभी-कभी नीम या पीपल दिखेगा दिलासा देता
फिर गलियाँ धीरे-धीरे अपनायेंगी और मेरी नसों में समा जाऍंगी
कहीं कोई पोखर, घाटियाँ, बिखरे हुये से पेड़
पुल, कोलाहल से भरे चौरस्ते और उदासी
झाड़ियाँ, मैदान, एक तरफ खिले हुये फूल
गिरती ओस और टूटती पत्तियाँ
हर शहर में एक स्त्री का स्थापत्य छिपा है
इस साँवली सड़क ने मुझे बाँहों में भर लिया है
तारों की परछाइयाँ मुझ पर सुलगती गिर रही हैं
मेरे माथे पर उनके चुंबनों की बौछार है
जिनकी चमक झील में गिरकर उछलती है
छूटता ही नहीं शहरों से मेरा प्रेम
उनके भीतर से उठती है मारक पुकार
वही है जो बार-बार मुझे उनकी तरफ लिवाये जाती है
और उन्हें किसी मादक प्रेम की तरह
अविस्मरणीय बनाती है।
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26 टिप्पणियां:
bEHAD AATMIYA AUR SUNDER KAVITA.
मैं उजली धुंधली यादों के कोहरे में खो गया... यह आपकी कविताओं का प्रभाव है.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/9/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
कुमार भाई यह अच्छा लगा , अब लगता है कि नियमित रूप से यहाँ आपकी नई कवितायें व लेख पढ़ने को मिलेंगे ।
कविता के बारे में क्या कहूँ , खो गया मैं भी ...।
I like it
प्रभाव छोड़ती है...मथती है...
बेहतर कविता...
अच्छी कविता पढने का सुख ही अलग है
aapki rachana se main prabhavit hoon
kumar saab
namaskar !
achchi abhivyakti hai , gahrai ke saath ,
sadhuwad
saadar !
"तारों की परछाइयॉं मुझ पर सुलगती गिर रही हैं"
....अदभुत !
प्रभावी अभिव्यक्ति ।
'एक स्त्री का स्थापत्य'........ अद्भुत !!!!!
Aapki kavitaon me sree ka sthapatya pabhavit karta hai.
गज़ब ! gi'mme more......
वाह …गहरी कविता और बहुत अच्छी कविता और कितनी चित्रात्मक.. बधाई स्वीकरें. महेश वर्मा, अंबिकापुर छत्तीसगढ़
अम्बुज जी आपको बहुत सुना था आज आपका ब्लॉग देखा तो बहुत अच्छा लगा ...आपकी नवीन कवितायेँ पढने को मिलेंगी .... बहुत प्रभावपूर्ण रचना .... हार्दिक शुभकामनाएँ
समेकित रूप से मैं अपने सभी उन मित्रों को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहता हूँ जो मेरे ब्लॉग पर आते हैं और जो अपनी टिप्पणी भी दर्ज कर देते हैं, उनके प्रति विशेष आभार।
very nice bhai ambujji
बहुत चित्र बनाती है कविता ..बहुत से बिम्ब
`स्त्री का स्थापत्य' ....बहुत खूब
कुमार जी , पहले तो सिर्फ आपके कविता संग्रह पढ़े थे , आपके चारों कविता संग्रह , अब आप ब्लॉग पर भी उपलब्ध हैं तो संवाद भी कायम रहेगा ...शुभकामनायें
नवीन विम्ब. शहर में स्त्री को देखना... सुन्दर कविता.
मान्यवर
नमस्कार
अच्छी रचना
मेरे बधाई स्वीकारें
साभार
अवनीश सिंह चौहान
पूर्वाभास http://poorvabhas.blogspot.com/
Har shahar ki fiza zahan me kuch yad chhod jati hai. shahar ko yad karane ka andaz bahut pasand aaya.
http://nature7speaks.blogspot.com
अम्बुज जी बहुत ही गहरे जज्बात है इस कविता में ........मन को छू गयी .
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
रमिया काकी
आपकी लिखी पंक्तियाँ काफी प्रभावित करती हैं.
सुन्दर उपमाएं है, शब्दों ने चित्र का काम किया है. आपके ब्लॉग पर आपकी रचनाये पढने को मिलेंगी , ख़ुशी हुई. धन्यवाद - लीना मल्होत्रा
http://lee-mainekaha.blogspot.com
Jee han ambujjee.main multaya bihar ka hun.sarkari sewa ki wajah se m.p. Main 14 oct 1991 se hun.uske pahle garhwal me cllege me English padha raha tha.Ab tak rewa,satna,jabalpur,sehore aur bhopal me rahne ka moka mila hai.Har shahar shuru me ek ajnabi,anjan thikana lagta raha.Dhire dhire us shahar ki anek cheejon se ankaha lagaw hua.Aapne jo anubhavon ka sandra prastutikaran kiya hai kuchh kuchh T.S.Eliot ke Objective Co-relative ki tarah.Badhai.
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