सोमवार, 12 दिसंबर 2011

डायरी : इधर उधर से बरामद कुछ कविताएं

प्रेम के दिन


पतझड़ से, मुसकराहटों से भरे
खुशी से लथपथ, चोट खाये हुए
घायल और क्षितिज पर टँगे
धूल झाड़कर हर बार खड़े तुम्हारे सामने
कभी घूरते हुए, कभी बिसूरते
कभी कंधे पर हाथ रखकर चलते

उनके बिना किसी का कोई जीवन नहीं।
00000

जैविक क्रिया


जिस वक्त को
व्यर्थ गवाँए वक्त की तरह याद करता हूँ
जैसे कहीं किसी प्रतीक्षा में, यों हीं ऊँघते हुए
कैरम खेलते या क्रिकेट देखते
या टूँगते हुए तारे या पत्थर या दीवार

वही वक्त किसी बोये गए बीज की तरह
यकायक प्रकट होता है डालियों से भरा पूरा
जब मैं होता हूँ सबसे ज्यादा निष्फल
सबसे ज्यादा असहाय।
00000

वजहें


किसी लेखक की तरह देखो अपना शहर
एक कवि, चित्रकार की निगाह से देखो अपना देश
तुम्हें अनगिन घाव दिखेंगे
उधड़ी हुयी खाल और चकत्ते
और बहता हुआ मवाद
और वे आदमी भी जो खदेड़ दिए गए हैं

और वहीं तुम्हें दिख सकती हैं वे वजहें भी
जो तुम्हारे नगर पालिका अध्यक्ष, विधायक
या सांसद बने रहने में हैं।
00000

यह एक पौधा


जबकि हर चीज किसी न किसी की व्यक्तिगत संपत्ति है
इन सबके बीच यह एक पौधा बच गया है
जो फिलहाल सार्वजनिक है

इसे मैं निर्भय उमगकर छूता हूँ।
000000

स्थगित अभिव्यक्तियाँ


शब्द भी प्रतीक्षा करते हैं और राह तकते हैं
उन्हें अभिवादन करते हुए
मुझे अपनी दिनचर्या में जाना पड़ता है

मैं लौटता हूँ तो वे सीढि़यों पर मिलते हैं
मुझे राह देते हुए रेलिंग की तरफ सट जाते हैं
फिर वे मेरे कमरे में आ जाते हैं
एक तरफ घुटने मोड़कर बैठेते हैं निशब्द

वे साथ नहीं छोड़ते, पीछा भी नहीं करते
बस आसपास बने रहते हैं
और कभी कभी देखते हैं इस तरह
कि मैं उनसे बस कुछ कह दूँ।
00000


कवि परंपरा


इस जीवन में
इस दुनिया में कुछ कमी है

वह क्या है जो नहीं है?
क्या है वह जो अटूट है, अनंत है?
आप बताना चाहते हैं तो लिखते हैं, कहते हैं
फिर लिखते हैं, फिर कहते हैं

फिर लगता है
ठीक से कुछ भी नहीं कहा जा सका
ठीक से कुछ भी नहीं लिखा जा सका
अब आप फिर से शुरू करते हैं

यह परंपरा है
यही कवि का जीवन है।
0000