कल 'शीरीं' 2008 फिल्म बहुत दिनों बाद फिर देखी।
यह वही खुसरो-शीरीं-फरहाद की पुरातन कहानी है लेकिन ईरानी फिल्मकार
कियारोस्तामी की कारस्तानी और कारनामे ने इसे कुछ अजब-गजब बना दिया है।
दरअसल यह फिल्म एक साउंड ट्रैक है। और दर्शक को विजुअल्स के नाम पर
केवल दर्शकों, अधिकांश महिलाओं, के चेहरे दिखते हैं, जो इस फिल्म को देखते हुए
दिखाई गईं है, साउंड ट्रैक आपको सुनाई दे रहा है।
संवाद किसी कविता का उत्कृष्ट रूप हैं।
आवाजों की कशिश, खासकर शीरीं की, आपको व्याप लेती है।
प्रेम, दुख, तकलीफ, राजनीति, वत्सलता, राग, वियोग, दीवानगी, आकांक्षा, मृत्यु,
नश्वरता और अनश्वर आशा के संयोजन ने इसे इंद्रधनुष से कहीं अधिक रंगसंपन्न कर दिया है।
यहाँ तो एक आँसू भी सात रंग बिखेरकर बहता है।
निजामी द्वारा लिखित इस अमर कथा को कियारोस्तामी ने
अधिक सांद्र, सघन और नया कर दिया है,
एक प्रसन्न तकलीफ और उदासी से भरकर।
हजार बार कही जा चुकी कहानी को इस तरह कहना अप्रतिम कला है।
दस 'स्टिल्स' संलग्न हैं। इन पर लिखे शब्द ध्यान से पढ़िए। इस समय भी प्रासंगिक हैं।
यह वही खुसरो-शीरीं-फरहाद की पुरातन कहानी है लेकिन ईरानी फिल्मकार
कियारोस्तामी की कारस्तानी और कारनामे ने इसे कुछ अजब-गजब बना दिया है।
दरअसल यह फिल्म एक साउंड ट्रैक है। और दर्शक को विजुअल्स के नाम पर
केवल दर्शकों, अधिकांश महिलाओं, के चेहरे दिखते हैं, जो इस फिल्म को देखते हुए
दिखाई गईं है, साउंड ट्रैक आपको सुनाई दे रहा है।
संवाद किसी कविता का उत्कृष्ट रूप हैं।
आवाजों की कशिश, खासकर शीरीं की, आपको व्याप लेती है।
प्रेम, दुख, तकलीफ, राजनीति, वत्सलता, राग, वियोग, दीवानगी, आकांक्षा, मृत्यु,
नश्वरता और अनश्वर आशा के संयोजन ने इसे इंद्रधनुष से कहीं अधिक रंगसंपन्न कर दिया है।
यहाँ तो एक आँसू भी सात रंग बिखेरकर बहता है।
निजामी द्वारा लिखित इस अमर कथा को कियारोस्तामी ने
अधिक सांद्र, सघन और नया कर दिया है,
एक प्रसन्न तकलीफ और उदासी से भरकर।
हजार बार कही जा चुकी कहानी को इस तरह कहना अप्रतिम कला है।
दस 'स्टिल्स' संलग्न हैं। इन पर लिखे शब्द ध्यान से पढ़िए। इस समय भी प्रासंगिक हैं।