रास्ते की
मुश्किल
आप मेज को मेज
तरह और घास को घास की तरह देखते हैं
इस दुनिया में से
निकल जाना चाहते हैं चमचमाते तीर की तरह
तो मुश्किल यहाँ
से शुरू होती है कि फिर भी आप होना चाहते हैं कवि
कुछ पुलिस
अधीक्षक होकर, कुछ किराना
व्यापारी संघ अध्यक्ष होकर
और कुछ तो मुख्यमंत्री
होकर, कुछ घर-गृहस्थी
से निबटकर
बच्चों के
शादी-ब्याह से फारिग होकर होना चाहते हैं कवि
कि जीवन में कवि
न होना चुनकर भी वे सब हो जाना चाहते हैं कवि
कवि होना या वैसी
आकांक्षा रखना कोई बुरी बात नहीं
लेकिन तब मुमकिन
है कि वे वाणिज्यिक कर अधिकारी या फूड इंस्पेक्टर नहीं हो पाते
जैसे तमाम कवि
तमाम योग्यता के बावजूद तेहसीलदार भी नहीं हुए
जो हो गए वे
नौकरी से निबाह नहीं पाए
और कभी किसी कवि
ने इच्छा नहीं की और न अफसोस जताया
कि वह जिलाधीश
क्यों नहीं हो पाया
और कुछ कवियों ने
तो इतनी जोर से लात मारी कि कुर्सियाँ जाकर गिरीं कोसों दूर
यह सब पढ़-लिखकर, और जानकर भी, हिन्दी में एम ए करके, विभागाध्यक्ष होकर
या फिर पत्रकार
से संपादक बनकर कुछ लोग तय करते हैं
कि चलो, अब लिखी जाए कविता
और जल्दी ही
फैलने लगती है उनकी ख्याति
कविताओं के साथ
छपने लगती हैं तस्वीरें
फिर भी अपने
एकांत में वे जानते हैं और बाकी सब तो समझते ही हैं
कि जिन्हें होना
होता है कवि, चित्रकार, सितारवादक या कलाकार
उन्होंने गलती से
भी नहीं सोचा होता है कि वे विधायक हो जाएँ या कोई ओहदेदार
या उनकी भी एक
दुकान हो महाराणा प्रताप नगर में सरेबाजार
तो आकांक्षा करना
बुरा नहीं है
यह न समझना बड़ी
मुश्किल है कि जिस रास्ते से आप चले ही नहीं
उस रास्ते की
मंजिल तक पहुँच कैसे सकते हैं।
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