शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

यानिस रित्‍सोस की एक कविता

अग्रज कवि नरेन्‍द्र जैन बहुत अच्‍छे अनुवादक भी हैं। 
यूनानी कवि यानिस रित्‍सोस की एक कविता यहॉं दी जा रही है।
यह 'समय के साखी' पत्रिका के ताजा अंक में उनके द्वारा अनूदित अन्‍य कुछ कविताओं के साथ प्रकाशित है।

सिर्फ़ एक चीज़

तुम्‍हें पता है, मृत्‍यु का कोई 
अस्तित्‍व नहीं होता
उसने कहा यही, स्‍त्री से

मैं जानती हूँ हॉं, चूँकि मैं
मृत्‍यु को हो चुकी हूँ प्राप्‍त
स्‍त्री ने जवाब दिया

तुम्‍हारी दो कमीजों पर
की जा चुकी है इस्‍तरी और वे
दराज़ में रखी हैं
सिर्फ़ एक चीज़ जो मुझसे छूट गई है
वह एक गुलाब है तुम्‍हारे वास्‍ते।
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2 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

अम्बुज जी,

आपको इन्दौर के प्रीतमलाल दुआ सभागार में सुनना और फिर आपसे हुई वो आत्मीय मुलाकात मैं भूल नही सकता।

कल फेसबुक ने एक बहुत ही अच्छा कार्य किया कि उसने ढूंढके आपको सजेस्ट किया और आपने और भी पुनीत मेरे निवेदन को स्वीकार करके।

स्त्री, का ऐसा होना ही उसे महान बनाता है और भोग्या भी अब यह तो उस आदमी पर निर्भर करता है अहसान माने या लम्पट सा मुकर जाए लेकिन दोनों ही अवस्थाओं में स्त्री वैसे ही सहज है जैसी इस कविता में.....गुलाब के फूल भूल जाने के लिए मुआफी माँगती हुई।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

ashok andrey ने कहा…

pehli baar aapke blog se gujra hoon,aur aapki kavitaon ne behad prabhavit kiya hai.sundar.