शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

अपराध और दण्‍ड

किंचित लंबा ही सही, 'अपराध और दण्‍ड' उपन्‍यास का यह एक हिस्‍सा।

- वह उठ कर खड़ा हो गया, लड़खड़ाया, अपना जग और गिलास उठाया, और नौजवान के पास आ कर बैठ गया, कुछ इस तरह कि उसके सामने नौजवान के चेहरे का बगली हिस्सा पड़ता था। वह शराब के नशे में चूर था, लेकिन बिना अटके हुए, बड़े भरोसे के साथ बोल रहा था। बस बीच-बीच में उसकी बात का तार टूट जाता था और उसे अपने शब्दों को खींच कर बोलना पड़ता था। वह रस्कोलनिकोव पर ऐसे नदीदों की तरह टूटा जैसे किसी आदमी से महीने भर से बात न की हो।
'जनाब,' उसने ऐसे दिखावे के भाव से बोलना शुरू किया, गोया प्रवचन कर रहा हो, 'गरीबी कोई बुराई नहीं है, यही सच बात है। लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि शराबी होना भी कोई अच्छी बात नहीं है, और यह बात उससे भी ज्यादा सच है। लेकिन कंगाल होना, जनाबे आली, कंगाल होना जरूर बुराई है। गरीबी में आप अपनी आत्मा की पैदाइशी बुनियादी नेकी बनाए रख सकते हैं, लेकिन कंगाली में कभी नहीं। कंगाल आदमी को डंडा ले कर समाज से खदेड़ा नहीं जाता, झाड़ू से बुहार कर बाहर फेंक दिया जाता है ताकि जितना ज्यादा हो सके, उसका अपमान हो। और यही ठीक भी है क्योंकि कंगाली में तो मैं खुद ही सबसे पहले अपना अपमान करने को तैयार रहूँगा। इसलिए जनाब, दारू की दुकान! जनाबे-आली, अभी एक महीना हुआ मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने मेरी बीवी को पीटा, और मेरी बीवी मुझसे बिलकुल अलग ही किस्म की चीज है! आप समझ रहे हैं न! अच्छा, मैं महज अपनी जानकारी के लिए आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ; आपने कभी नेवा नदी पर भूसे की नाव पर रात बसर की है?'
'जी नहीं, कभी नहीं,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। 'इसका क्या मतलब है?'
'बात बस यह है कि वहाँ इस तरह सोते हुए मुझे पाँच रातें हो गईं...'
उसने अपना गिलास भरा, गटक गया, और सोच में डूब गया। सचमुच उसके कपड़ों से भूसे के टुकड़े चिपके हुए थे, और उसके बालों में भी उलझे हुए थे। लगता था पाँच दिन से उसने कपड़े नहीं बदले थे और न मुँह-हाथ धोया था। खास तौर पर उसके हाथ तो बहुत ही गंदे थे। हाथ मोटे और लाल रंग के थे और नाखून बिलकुल काले हो रहे थे।
लगता था उसकी बातचीत आम तौर पर दिलचस्पी तो जगा रही थी, लेकिन बहुत जोश वाली नहीं। काउंटर पर काम करनेवाले लड़के खी-खी करके हँसने लगे। शराबखाने का मालिक खास इस 'मसखरे बंदे' की बातें सुनने के इरादे से ऊपरवाले कमरे से उतर कर नीचे आ गया, और थोड़ी दूर बैठ कर अलसाए ढंग से लेकिन गरिमा के साथ जम्हाई लेने लगा। साफ लगता था कि मार्मेलादोव यहाँ की एक जानी-पहचानी हस्ती था, और बहुत मुमकिन था कि उसमें लच्छेदार भाषण की कमजोरी इस वजह से पैदा हुई हो कि उसे शराबखाने में अकसर, तरह-तरह के अजनबियों से बातचीत करने की आदत थी। कुछ शराबियों में यह आदत बढ़ते-बढ़ते एक जरूरत बन जाती है, खास तौर पर उन लोगों में जिन पर घर में कड़ी नजर रखी जाती है और जिनकी बहुत बेकद्री की जाती है। इसलिए दूसरे पीनेवालों के बीच बैठ कर वे अपनी हरकतों को सही ठहराने की और मुमकिन हो तो उनकी हमदर्दी हासिल करने की भी कोशिश करते हैं।
'मसखरा बंदा है यह भी!' शराबखाने के मालिक ने अपना फरमान सुनाया। 'आखिर तुम काम क्यों नहीं करते या अगर तुम किसी नौकरी से लगे हो तो अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं हो?'
'जनाब, मैं अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं हूँ!' मार्मेलादोव ने सिर्फ रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए अपनी बात जारी रखी, मानो वह सवाल उसी ने पूछा हो। 'मैं अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं हूँ? क्या यह सोच कर मेरा दिल नहीं दुखता कि मैं एक बेकार कीड़ा हूँ? एक महीना हुआ, मेरी बीवी को मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने अपने हाथों से पीटा था, और मैं शराब के नशे में धुत पड़ा था। तब क्या मुझे तकलीफ नहीं हुई थी? माफ करना, नौजवान, क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है... हुँह... मेरा मतलब है, तुम्हें कोई उम्मीद न होते हुए भी किसी से कर्ज के लिए फरियाद करनी पड़ी हो?'
'हाँ, हुआ है... लेकिन ''कोई उम्मीद न होते हुए भी" से आपका क्या मतलब है?'
'हर मानी में कोई उम्मीद न होते हुए, जब तुम्हें पहले से मालूम हो कि तुम्हें कुछ मिलनेवाला नहीं है। गोया यूँ समझ लो, तुम्हें पूरे यकीन के साथ पहले से मालूम है कि यह आदमी, यह नामी-गिरामी शहरी, जिसकी लोग मिसाल देते हैं, किसी भी कीमत पर तुम्हें पैसा देनेवाला नहीं है। और सच तो यह है कि, मैं पूछता हूँ, वह क्यों पैसा दे। जाहिर है, वह जानता है कि मैं पैसा वापस नहीं करूँगा। तरस खा कर मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने, जो हर नए से नए विचार की खबर रखते हैं, अभी उसी दिन समझाया था कि आजकल साइंस तक ने तरस खाने पर पाबंदी लगा दी है, और यह कि अब इंग्लैंड में यही होता है, जहाँ राजनीतिक अर्थशास्त्र का बोलबाला है। आखिर क्यों, मैं पूछता हूँ, वह मुझे पैसा क्यों दे फिर भी मैं उसके पास जाने के लिए चल पड़ता हूँ हालाँकि मैं पहले से जानता हूँ कि वह देनेवाला नहीं है, और...'
'क्यों जाते हैं आप?' रस्कोलनिकोव ने बात काट कर पूछा।
'लेकिन जब किसी का कोई न हो, जब उसके पास जाने को कोई दूसरा ठिकाना न हो तो! इसलिए कि हर आदमी के पास जाने के लिए कोई ठिकाना तो होना चाहिए। इसलिए कि ऐसे वक्त भी आते हैं जब आदमी को कहीं न कहीं जाना पड़ता है! जब मेरी बेटी पहली बार पीला टिकट - वेश्यावृत्ति का लाइसेंस-  ले कर बाहर निकली थी तो मुझे जाना पड़ा था... (क्योंकि मेरी बेटी सड़कगर्दी से रोजी कमाती है),' उसने यह आखिरी बात नौजवान की ओर कुछ बेचैनी से देखते हुए दबी जबान से जोड़ी। 'कोई बात नहीं जनाब, कोई बात नहीं!' जब काउंटर पर बैठे हुए दोनों लड़के ठहाका मार कर हँस पड़े और शराबखाने का मालिक भी मुस्कराने लगा तो जल्दी-जल्दी और अपने आपको जाहिर तौर पर सँभालते हुए उसने अपनी बात जारी रखी। 'कोई बात नहीं, मुझे उनके सर हिलाने से जरा भी उलझन नहीं होती; क्योंकि इसके बारे में हर आदमी सब कुछ जानता है, और जो कुछ अब तक ढका-छिपा था, वह भी खुल कर सामने आ चुका है। और मैं यह सब कुछ तिरस्कार के साथ नहीं, बल्कि विनम्रता से मानता हूँ। ऐसा ही सही! ऐसा ही सही! इनसान को देखो!'
'खैर,' भाषण करनेवाले ने कमरे में खी-खी की आवाज के दबने की राह देखने के बाद एक बार फिर ज्यादा सधी आवाज में पहले से भी ज्यादा मर्यादा के साथ अपनी बात शुरू की। 'खैर, ऐसा ही सही, मैं तो सुअर हूँ लेकिन वह रईसजादी है! मैं तो जानवर हूँ लेकिन कतेरीना इवोनाव्ना, मेरी धर्मपत्नी, पढ़ी-लिखी औरत है और एक अफसर की बेटी है। माना, मान लिया कि मैं लफंगा हूँ, लेकिन वह दिल की हीरा औरत है, उसके दिल में भावनाएँ हैं, पढ़ाई-लिखाई ने उसकी आत्मा को निखार दिया है! लेकिन फिर भी... काश, उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ दर्द होता! जनाब... जनाबे-आली, आप जानते हैं कि हर आदमी के पास कम-से-कम एक ठिकाना तो ऐसा होना ही चाहिए जहाँ लोगों के दिल में उसके लिए भी कुछ दर्द हो! लेकिन कतेरीना इवानोव्ना... हालाँकि वह बड़े दिल की औरत है, लेकिन उसमें इन्साफ नहीं है...

लेकिन फिर भी मैं जानता हूँ कि जब वह मेरे बाल पकड़ कर घसीटती है तो तरस खा कर ही ऐसा करती है - क्योंकि नौजवान, 'मेरा स्वभाव ही ऐसा है! आप जानते हैं जनाब, आपको मालूम है क्या कि शराब के लिए मैंने उसकी लंबी जुराबें तक बेच दीं उसके जूते नहीं - वह तो खैर कमोबेश इतनी बेजा बात न होती, लेकिन उसकी लंबी जुराबें मैंने शराब के लिए बेच दीं, उसकी जुराबें! उसकी पशमीने की शाल भी मैंने शराब के लिए बेच दी। वह उसे बहुत पहले तोहफे में मिली थी, उसकी अपनी चीज थी, मेरी नहीं थी। हम लोग ठिठुरते हुए एक ठंडे कमरे में रहते हैं और वह इस बार जाड़े में सर्दी खा गई और उसे खाँसी आने लगी है, साथ में खून भी आता है। हमारे तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं और कतेरीना इवानोव्ना सबेरे से रात तक काम में जुती रहती है, झाड़ू-बुहारू करती है, सारे कपड़े वगैरह धोती है और बच्चों को नहलाती-धुलाती है, क्योंकि उसे बचपन से सफाई की आदत रही है। लेकिन उसका सीना कमजोर है और तपेदिक हो जाने का डर लगा रहता है, और मैं इस बात को महसूस करता हूँ। क्या आप यह सोचते हैं कि मैं इस बात का महसूस नहीं करता? मैं जितनी ज्यादा पीता हूँ, उतना ही ज्यादा इस बात को महसूस करता हूँ। पीता भी मैं इसीलिए हूँ। शराब में मैं हमदर्दी खोजता हूँ और चाहता हूँ कि मुझ पर कोई तरस खाए... मैं पीता इसलिए हूँ कि मुझे दोगुनी तकलीफ हो!' यह कह कर, गोया निराश हो कर उसने अपना सिर मेज पर टिका लिया।

'नौजवान,' उसने सर उठा कर फिर कहना शुरू कियातो मैं बता रहा था कि मेरी बीवी रईसों की बेटियों के उम्दा स्कूल की पढ़ी हुई है, और स्कूल छोड़ते वक्त उसने गवर्नर साहब के और दूसरी बड़ी-बड़ी हस्तियों के सामने शालवाला नाच पेश किया था, और उसे इनाम में सोने का एक मेडल और प्रशंसापत्र दिया गया था। मेडल... खैर, मेडल तो जाहिर है, बेच दिया गया था - बहुत पहले ही, हुँह... लेकिन वह प्रशंसापत्र अभी तक उसके संदूक में रखा है और अभी, बहुत दिन नहीं हुए, उसने मकान-मालकिन को वह दिखाया था। यूँ तो मकान-मालकिन से उसकी कभी नहीं बनी, लेकिन वह किसी न किसी को अपने पिछले कमालों के बारे में और बीते हुए सुख के दिनों के बारे में बताना चाहती है। इसके लिए मैं उसे बुरा नहीं कहता, उसे कोई दोष नहीं देता, क्योंकि उसके पास बीते हुए दिनों की इन यादों के अलावा बचा ही क्या है, बाकी सब तो मिट्टी में मिल चुका! जी हाँ, जी हाँ, बड़े दिल-गुर्दे वाली खानदानी औरत है, कभी किसी के आगे सर नहीं झुकाया, और जो जी में ठान लिया उसे पूरा करके छोड़ा। अपने हाथ से झाड़ू देती है और खाने को काली रोटी के अलावा कुछ होती भी नहीं, लेकिन मजाल है कि कोई उसके साथ बेइज्जती का सलूक कर दे। इसीलिए तो मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने उसके साथ जो बदतमीजी की, उसे वह अनदेखा करने को तैयार नहीं थी, और यही वजह है कि उन्होंने जब इस बात पर उसकी पिटाई की तो उसने चारपाई पकड़ ली... जो चोट लगी थी उसकी वजह से इतना नहीं, जितना इस वजह से कि उसकी भावनाओं को ठेस पहुँची थी।

जब मैंने उससे शादी की थी, उस वक्त वह विधवा थी, तीन बच्चों की माँ और सभी नन्हे-मुन्ने। उसने अपने पति से, जो पैदल सेना में अफसर था, प्रेम करके शादी की थी, और बाप के घर से उसके साथ भागी थी। उसे बेहद लगाव था अपने पति से, लेकिन वह जुआ खेलने लगा, मुकद्दमे में फँस गया और उसी हालत में मरा भी। आखिर में वह उसे मारने-पीटने लगा था। हालाँकि वह भी जवाब में उसकी पिटाई करती थी, जिसका मेरे पास पक्का, लिखित सबूत है, लेकिन आज भी वह जब उसकी बात करती है तो उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं और वह हमेशा उसका हवाला दे कर मुझे ताने देती रहती है। और मुझे खुशी है, इस बात की खुशी है कि कल्पना में ही सही, वह अपने बारे में सोचती तो है कि वह कभी सुखी थी... तो उसके मरने के बाद वह दूर-दराज के एक बीहड़ इलाके में तीन बच्चों के साथ अकेली रह गई। इत्तफाक से उन दिनों मैं भी वहीं था, और वह ऐसी घोर गरीबी की हालत में थी कि मैं हर तरह के बहुत-से उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद अपने आपको इस लायक नहीं पाता कि उसका बयान कर सकूँ। उसके सभी रिश्तेदारों ने उससे एकदम नाता तोड़ लिया था। पर वह अपनी आन की पक्की थी, बेहद पक्की... और तब, जनाब तब मैंने... उस वक्त मेरी पहली बीवी मर चुकी थी और उससे एक चौदह साल की बेटी थी तो मैंने उसके सामने सुझाव रखा कि मुझसे शादी कर ले, क्योंकि मुझसे उसकी ऐसी दर्दनाक हालत नहीं देखी जाती थी। आप उसकी मुसीबतों का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि वह, इतनी पढ़ी-लिखी, इतनी सलीकेमंद, सचमुच ऐसे ऊँचे खानदान की औरत, मेरी बीवी बनने को राजी हो गई! सचमुच राजी हो गई! रोते और सिसकते हुए, अपने हाथ मलते हुए उसने मुझसे शादी कर ली। क्योंकि उसके पास कोई और ठिकाना नहीं था! आप समझते हैं, जनाब, आप समझते हैं न कि क्या मतलब होता है इसका, जब आपके पास एकदम कोई ठिकाना न हो नहीं आप अभी यह बात नहीं समझते... तो पूरे एक साल तक मैं अपने सारे फर्ज ईमानदारी और वफादारी के साथ पूरे करता रहा, और इसे छुआ तक नहीं' (यह कह कर उसने उँगली से अपने जग को टिकटिकाया), 'क्योंकि मेरे दिल में भी दर्द है, भावनाएँ हैं। लेकिन यह सब करके भी मैं उसे खुश नहीं कर सका। और फिर मेरी नौकरी भी छूट गई, पर उसमें मेरा कोई कुसूर नहीं था बल्कि दफ्तर में ही कुछ हेर-फेर हो गए थे; और तब मैंने इसे छुआ! ...कुछ ही दिनों में डेढ़ साल हो जाएँगे उस बात को जब हम कई जगह भटकने के बाद, कितनी ही मुसीबतें झेलने के बाद अनगिनत स्मारकों से सजी इस शानदार राजधानी में पहुँचे थे। यहाँ मुझे एक नौकरी मिल भी गई। ...मिल भी गई और छूट भी गई। आप समझ रहे हैं इस बार नौकरी मेरी अपनी गलती से गई क्योंकि मेरी यह कमजोरी उभर आई थी... अब हमारे पास अमालिया फ्योदोरोव्ना लिप्पेवेख्सेल के यहाँ एक कमरे का एक हिस्सा है; पर मैं यह नहीं बता सकता कि कहाँ से हम अपनी गुजर-बसर करते हैं और कहाँ से अपना किराया भरते हैं। वहाँ हमारे अलावा और भी बहुत से लोग रहते हैं। गंदगी और बेतरतीबी, बिल्कुल भटियारखाने जैसा... जी हाँ... और इस बीच पहली बीवी से मेरी जो बेटी थी वह बड़ी हो गई, और जिस जमाने में मेरी बेटी बड़ी हो रही थी उस दौरान उसे अपनी सौतेली माँ के हाथों क्या-क्या सहना पड़ा, इसके बारे में मैं कुछ भी नहीं कहूँगा। कतेरीना इवानोव्ना दिल की बहुत बड़ी तो है, लेकिन उसका मिजाज बहुत तेज है, बेहद चिड़चिड़ा, और गुस्सा जैसे उसकी नाक पर रखा रहता है... जी हाँ! लेकिन कोई फायदा नहीं! इन सब बातों की चर्चा से! सोन्या को, जैसा कि आप सोच सकते हैं, कभी पढ़ना-लिखना नसीब नहीं हुआ। चार साल पहले मैंने उसे भूगोल और दुनिया का इतिहास पढ़ाने की कोशिश की थी लेकिन ये विषय मुझे खुद अच्छी तरह नहीं आते थे, हमारे पास ढंग की किताबें भी नहीं थीं, और जो थोड़ी-बहुत किताबें थीं भी... हुँह, बहरहाल अब तो वे भी नहीं रह गईं हमारे पास। सो हमारा पढ़ने-लिखने का सारा सिलसिला खत्म हो गया। हम फारस के बादशाह साइरस तक पहुँच कर उससे आगे नहीं बढ़ सके। जबसे वह जवान हो चली, उसने कुछ और रोमांटिक किस्म की किताबें पढ़ी हैं, और भी इधर हाल में उसने बड़ी दिलचस्पी से एक किताब पढ़ी है जो उसे मिस्टर लेबेजियातनिकोव के जरिए मिली थी, जार्ज लेबिस की 'शरीरक्रिया' - आप जानते तो होंगे इस किताब को ...उसने हमें उसके कुछ हिस्से सुनाए भी थे, तो बस यही है उसकी कुल पढ़ाई। और अब क्या मैं आपसे, जनाबे-आली, अपनी खातिर एक निजी किस्म का सवाल पूछने की हिम्मत कर सकता हूँ क्या आप सोचते हैं कि कोई गरीब इज्जतदार लड़की ईमानदारी से काम करके काफी पैसा कमा सकती है अगर वह इज्जतदार है और उसमें कोई खास हुनर नहीं है, दिन-भर में पंद्रह टके नहीं कमा सकती, और इतना भी कमाएगी तब, जब वह अपने काम में पल भर को दम न ले! और बात इतनी ही नहीं है; इवान इवानोविच क्लापस्टाक ने, वही जो सिविल कौंसिलर हैं - आपने उनका नाम सुना तो होगा - उससे लिनेन की जो आधा दर्जन कमीजें बनवाई थीं, उनके पैसे आज तक उसे नहीं दिए, बल्कि उल्टे उसे झिड़क कर भगा दिया। उन्होंने बहुत पाँव पटके और उसे बहुत बुरा-भला कहा; बहाना यह बनाया कि कमीजों के कालर वैसे नहीं थे जैसे नमूने की कमीज में थे, और टेढ़े लगे थे। इधर छोटे-छोटे बच्चे भूखे थे... कतेरीना इवानोव्ना हाथ मलते हुए इधर से उधर टहल रही थी, गाल तमतमाए हुए, जैसा कि इस बीमारी में हमेशा हो जाता है। बोली, 'यहाँ हमारे मत्थे रहती है, खाती है, पीती है और गर्म कमरे का मजा भी लेती है; काम करते छाती फटती है।' और क्या मिलता है उसे खाने-पीने को जब कि नन्हे बच्चों को तीन-तीन दिन एक कौर नसीब नहीं होता! और उस वक्त मैं पड़ा हुआ था... उससे क्या होता है! मैं शराब के नशे में धुत था और मैंने सोन्या को बोलते सुना (बहुत फूल-सी बच्ची है, बहुत कोमल और धीमी आवाज है उसकी... सुनहरे बाल और चेहरा ऐसा पीला और दुबला-पतला कि पूछिए नहीं)। वह बोली, 'कतेरीना इवानोव्ना, क्या आप सचमुच मुझसे वही काम करवाना चाहती हैं और दार्या फ्रांत्सोव्ना जैसी बदचलन औरत, जिसे पुलिस अच्छी तरह जानती है, दो-तीन बार मकान-मालकिन के जरिए उसे घेरने की कोशिश कर चुकी थी। 'क्यों, हर्ज ही क्या है कतेरीना इवानोव्ना ने ताने से कहा, 'तुम कहाँ की ऐसी अनमोल रतन लिए हुए हो कि तुम्हें सहेज कर रखा जाए!' लेकिन उसे दोष न दीजिए, साहब, उसे दोष न दीजिए! जिस वक्त उसने यह बात कही थी उस वक्त वह आपे में नहीं थी। अपनी बीमारी की वजह से और भूखे बच्चों के रोने-बिलखने की वजह से उसके होश उस वक्त ठिकाने नहीं थे; उसने वह बात किसी और वजह से नहीं, बस उसे चोट पहुँचाने के लिए कही थी... क्योंकि कतेरीना इवोनाव्ना का ऐसा ही स्वभाव है और जब बच्चे रोने लगते हैं, चाहे वे भूख से क्यों न रो रहे हों, वह फौरन उन्हें धुन कर रख देती है। 
कोई छह बजे मैंने देखा कि सोन्या उठी, सर पर रूमाल बाँधा, कंधे पर बिना आस्तीन का कोट डाला और कमरे के बाहर चली गई। वह लगभग नौ बजे लौटी। सीधे कतेरीना इवानोव्ना के पास गई और चुपचाप उनके सामने मेज पर तीस रूबल रख दिए। उसने एक बात भी नहीं कही, उनकी ओर देखा तक नहीं, बस हमारी बड़ी-सी हरे रंग की जनाना शाल उठाई (हम लोगों के पास बस एक शाल है, जनाना) और उसे सिर तक ओढ़ कर, दीवार की तरफ मुँह करके चारपाई पर लेट गई। उसके छोटे-छोटे कंधे और उसका सारा शरीर काँपता रहा...

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…


'अपराध और दंड' उपन्यास से सटीक हिस्सा प्रस्तुत करने हेतु आभार!

शराब की दो घूंट गले में उतरते ही गूंगे भी देश दुनिया की चिंता में धारा प्रवाह बोलने लगते हैं ..

कविता रावत ने कहा…


'अपराध और दंड' उपन्यास से सटीक हिस्सा प्रस्तुत करने हेतु आभार!

शराब की दो घूंट गले में उतरते ही गूंगे भी देश दुनिया की चिंता में धारा प्रवाह बोलने लगते हैं ..