रविवार, 1 मार्च 2015

मेरे शब्दकोष में मुआफ़ी की भीख माँगने वाले शब्द नहीं

एक कविता अविजित रॉय की जीवन साथी रफीदा अहमद बान्ना के लिए
(ये कविता काफिला ने वेब पर प्रकाशित की थी।  तीस्ता के ज़रिये मोडेरेट्स ग्रुप पर मुझ तक पहुंची और मैंने साथी नूर ज़हीर की मदद लेकर इसका तर्जुमा हिंदी में  कर दिया। कॉमरेड पानसरे को तथाकथित हिन्दू धर्मांधों ने मारा और अविजित रॉय को अपने आपको मुसलमान कहने वाले फिरकापरस्तों ने। इस कविता के ज़रिये हम सब बान्ना के दुःख के साथ शामिल हो सकेंगे।-विनीत तिवारी)

बहन बान्ना, सुनो ज़रा।

- इरफानुर रहमान रफीन
(बांग्ला से अंग्रेज़ी तर्जुमा की हुई कविता का हिंदी तर्जुमा - विनीत तिवारी)

मेरे शब्दकोष में मुआफ़ी की भीख माँगने वाले शब्द नहीं,
लेकिन फिर भी कुछ तो ज़रूरी है कहना
इसलिए मैं तुम्हारे कानों में फुसफुसाता हूँ मेरी बहन बान्ना,
कि पारुल के पास अभी भी सात भाई सलामत हैं
मैं जानता  हूँ कि कुछ इसे कुफ्र कहेंगे
मैं कहूँगा कि वो मेरा माँजाया बच्चा था
हम देखेंगे कि कौन सही था - नज़रुल
या वे जो ज़िंदगी छीनकर खुदाई पर अपना हक़ जताते हैं
उनकी भविष्यवाणियों पर यक़ीन मत करना
जो लाशों से भी खेला करते हैं खेल
गोलियों और आग से शुरू हुई जंग ने
पहुँचाये हैं घर-घर तक कफ़न सफ़ेद
ज़मीन के इस हिस्से में किसी की ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं
मैं जानता हूँ खून जब बहता है तो सबके लिए बराबर
लेकिन बहन बान्ना, इन लफ़्ज़ों को सुनो
सबसे संगदिल से भी आज निकल रही है कराह ।
फरवरी २८, २०१५

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