गुरुवार, 7 नवंबर 2019

हत्यारे की जीवनी


(एक)
जनता वाचनालय में एक दिन मुझे हाथ लगी हत्यारे की जीवनी
जर्जर पीले पन्नों की वह किताब पुराने कागज की गंध से भरी
उस पर ख़ून का एक छींटा भी नहीं था
आवरण पर रौनक थी और उस पर बना चित्र इतना सात्विक
कि उसके लिए जँच सकता था कुछ बेहतर शीर्षक भी
जीवन में कविता की किताब खोजते हुए
अचानक ही वह मुझे मिल गई
विशाल जनता-वाचनालय के एक कोने में बैठकर उसे पढ़ा मैंने
वह एक फूल के वर्णन से शुरू होती थी
तालाब किनारे बने देवालय को प्रणाम करती
सिर झुकाकर एक पेड़ के तने के नीचे से निकलती
वह बागीचे में जाती थी और आसमान की तरफ
देखती थी कैमरामैन की निगाह से
अनगिन पेड़ों, पक्षियों और शरारतों के दृश्यों से भरपूर
वह शुरू से ही जकड़ लेती थी अपने मोह में
दरअसल वह एक मोहिनी थी
लिखा गया था जिसे जीवनी की तरह
उसमें एक तितली को इसलिए पकड़ा गया था
कि उसके पास सबसे अलहदा सबसे ज्यादा सबसे सुंदर रंग थे
ऐसा ही सलूक एक बार चींटी के साथ किया गया
फिर चिड़िया के साथ और फिर कब्र पर पड़े एक फूल के साथ
फूल के विवरण से शुरू हुआ अध्याय
एक फूल को कुरते पर लगा लेने में खत्म होता था।
(दो)
उसमें एक बच्चे का बचपना था
जिसे हत्यारे का बचपना नहीं कहा जा सकता
उसकी किशोरावस्था तो और ज़्यादा मदमाती थी
फिर वह भीड़ से प्रेम करने लगा और एकांत में बिलखता था
फिर एकांत में प्रेम करता था और व्यग्र रहता था भीड़ में
पृष्ठ क्रमांक 184 पर उसने प्रेम करते हुए कसम खाई
कि वह सब कुछ बनेगा लेकिन कभी हत्यारा नहीं बनेगा
मगर उसकी पत्नी तक ने कसम पर भरोसा नहीं किया
उसकी प्रेमिका इस शपथ से घबराकर
अजानी आशंका में शहर ही छोड़कर चली गई
उसकी याद में जीवनी में लिखे गए थे
तेईस पृष्ठ और अड़तालीस पैराग्राफ
उसमें से एक भावुक हृदय झाँकता था और आकांक्षाएँ
मसलन उसे नापसंद थे गंदगी में रहनेवाले लोग
लेकिन वह पटियों पर बैठकर चाय पी लेता था
गरीबों, आदिवासियों के संग तस्वीरें थीं उसकी
एक तसवीर के लिए वह गटर तक में उतर गया था
और भरी सभा में भी उसे कभी
अपना दिल खोलकर रख देने में कोई संकोच नहीं रहा
वह संगीत से प्रेम करता था और सितार सुनने के लिए
चला जाता था बीस मील दूर तक पैदल
जब वह बाँसुरी की धुन पर सवार होकर चंद्रमा के पास पहुँचता
तो हत्या का विचार तक मन में न आता था
उसने कई पोशाकें बदलीं, कई चेहरे लगाए, कई भाषाएँ सीखीं
वह सब कुछ जैसा लगना चाहता था हत्यारा नहीं
वह कई बार भूखा रहा और कुछ दिन गरीबी में बीते
उसने अखबार बाँटे, ब्रेड बेची, बैरे का काम किया
नगर पालिका लैंप पोस्ट के नीचे करता रहा पढ़ाई
एक समय वह डॉक्टर होना चाहता था
एक वक्त बनना चाहता था खिलाड़ी और एक समय चित्रकार
वह जहाँ भी जाता था वहीं का हो जाना चाहता था
सर्वव्यापी प्रेम के नशे में अपनी नाकुछ ऊँचाई से
वह पूरी दुनिया पर निगाह डालता था, कहता था-
इसे मैं अब अपनी तरह से बनाऊँगा।
(तीन)
उसकी मृत्यु आत्म हत्या की तरह प्रचारित हुई
आधिकारिक सूचना से कहा गया देवलोकगमन
या शायद वह बच भी गया था और आज तक जीवित है
ऐसी संभावना भी उस किताब में छोड़ दी गई थी
हत्यारे की जीवनी से ही पता चली यह विलक्षण बात
कि खुद उसने कभी किसी की हत्या नहीं की
उसे तो कोई हथियार चलाना भी नहीं आता था
वह सीधे-सादे ढंग से रहता था
योग, व्यायाम, साधना में काटता रहा नश्वर जीवन
यहाँ तक आते-आते वह लोकप्रिय हो गया था अपार
पाठ्य पुस्तकों में भरे थे उसके वृतांत
तमाम दीवारों, दफ्तरों, पूजाघरों में उसकी तस्वीरें
जीवनी जहाँ खतम हुई उसके बाद के खाली पृष्ठ पर
किसी पाठक ने, अजीब से मज़ाक में, लिख दिया था-
       ‘
हत्याओं से पहले हत्यारे की जीवनी!
    यह सिर्फ मज़ाक ही तो हो सकता है
    या हत्यारे की जीवनी के किसी पाठक का अपना पाठ
    मुमकिन है एक दिन हमें मालूम हो
    कि यही है ऐतिहासिक तथ्य भी।
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