शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

आखिर हमें कुछ प्रतीक्षा करना ही होता है।

जल्‍दी ही हम नए शब्‍दों के साथ मुलाक़ात करेंगे।
हरेक इतवार की सुबह से यह नई शुरुआत होती रहेगी।

2 टिप्‍पणियां:

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

कुमार जी यह अंतराल काफी ज्‍यादा नहीं हो जाएगा इस अंतराल को कम कर दें कम से कम रोज नहीं दो दिन में तो एक बार पढवा ही दें हमें

बेनामी ने कहा…

हां, मोहन जी, मैं इस बारे में कुछ करूंगा। दरअसल, दूसरी व्‍यस्‍तताएं इतनी ज्‍यादा हैं। बहरहाल, एकाध महीने में इस अंतराल को पाट सकूंगा। आपके प्रेम और उत्‍सुकता के लिए धन्‍यवाद।
-कुमार अंबुज