अपमान
वह नियमों में शामिल है और सड़क पर चलने में भी
सबसे ज्यादा तो प्यार करने के तरीकों में
वह रोजी-रोटी की लिखित शर्त है
और अब तो कोई आपत्ति भी नहीं लेता
सब लोग दस्तखत कर देते हैं
मुश्किल है रोज-रोज उसे अलग से पहचानना
वह घुलनशील है हमारे भीतर और पानी के रंग का है
वह हर बारिश के साथ होता है और अक्सर हम
आसमान की तरफ देखकर भी उसकी प्रतीक्षा करते हैं
आप देख सकते हैं : यदि आपके पास चप्पलें या स्वेटर नहीं हैं
तो कोई आपको चप्पल या कपड़े नहीं देगा सिर्फ अपमानित करेगा
या इतना बड़ा अभियान चलायेगा और इतनी चप्पलें
इतने चावल और इतने कपड़े इकट्ठे हो जायेंगे
कि अपमान एक मेला लगाकर होगा
कहीं-कहीं वह बारीक अक्षरों में लिखा रहता है
और अनेक जगहों पर दरवाजे के ठीक बाहर तख्ती पर
ठीक से अपमान किया जा सके इसके लिए बड़ी तनख्वाहें हैं
हर जगह अपमान के लक्ष्य हैं
कुछ अपमान पैदा होते ही मिल जाते हैं
कुछ न चाहने पर भी और कुछ इसलिए कि तरक्की होती रहे
वह शास्त्रोक्त है
उसके जरिये वध भी हो जाता है
और हत्या का कलंक भी नहीं लगता।
14 टिप्पणियां:
...कविता में डूबना अपमान को महसूस करने जैसा है। बहुत अच्छी लगी यह कविता।
बहुत गहन रचना.
वह शास्त्रोक्त है
उसके जरिये वध भी हो जाता है
और हत्या का कलंक भी नहीं लगता...
बेहतर कविता...
या इतना बड़ा अभियान चलायेगा और इतनी चप्पलें इतने चावल और इतने कपड़े इकट्ठे हो जायेंगे कि अपमान एक मेला लगाकर होगा..is kavita ki sabse adhbhut baat
saadar
एकदम दुरूस्त. हाकिम को हक़ है बेइज़्ज़्ती का.
बहुत अच्छी कविता .
कुमार साब
प्रणाम !
या इतना बड़ा अभियान चलायेगा और इतनी चप्पलें इतने चावल और इतने कपड़े इकट्ठे हो जायेंगे कि अपमान एक मेला लगाकर होगा! बेहद अच्छी लगी ये पंक्तिया , सुंदर कविता के लिए , साधुवाद !
सादर !
वह शास्त्रोक्त है
उसके जरिये वध भी हो जाता है
और हत्या का कलंक भी नहीं लगता.bahut sunder...
प्रगतिशील वसुधा में आपकी 'कविता की स्मृति'पढ़ती रहती हूँ ....यह कविता आज के समय की निर्मम त्रासदी है ,जिसे हम सभी कहीं न कहीं भुगत रहे हैं ...'अपमान' ने आजकल अपना वेश बदल लिया है और वह अब बड़े सभ्य और शातिर तरीके से मिलता है ...'' ठीक से अपमान किया जा सके इसके लिए बड़ी तनख्वाहें हैं ''.....सच !!! तनख्वाहें ही नही पुरस्कार भी घोषित हैं ...!
महाभारत के एक प्रसंग की याद दिला दी , जब अर्जुन युधिष्ठिर के वध की प्रतिज्ञा करता है , तो कृष्ण उन्हें युधिष्ठिर का अपमान करने को कहते हैं कि उनका अपमान ही उनकी मृत्यु है , और मृत्यु का पाप भी नहीं लगेगा |
Bahut achchhee
इस त्रयी की तीनों कविताएँ - धूप में रहना है, अपमान तथा बचाव - विलक्षण हैं। यदि आपकी अनुमति हो तो इन कविताओं को काव्य-प्रसंग पर लगाना चाहूँगा।
आप देख सकते हैं : यदि आपके पास चप्पलें या स्वेटर नहीं हैं
तो कोई आपको चप्पल या कपड़े नहीं देगा सिर्फ अपमानित करेगा
या इतना बड़ा अभियान चलायेगा और इतनी चप्पलें
इतने चावल और इतने कपड़े इकट्ठे हो जायेंगे
कि अपमान एक मेला लगाकर होगा
कहीं-कहीं वह बारीक अक्षरों में लिखा रहता है
और अनेक जगहों पर दरवाजे के ठीक बाहर तख्ती पर
और हमे तो आदत ही हो गई है... अपमानित होने की
bahut achchhe!
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