शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

दुखद प्रतीक्षा

पाब्‍लो नेरूदा की कविता 'द अनहैप्‍पी वन' का अनुवाद।
अनुवाद अंतत: एक पुनर्रचना ही है।

दुखद प्रतीक्षा
पाब्लो नेरूदा

मैं उसे बीच दरवाजे पर प्रतीक्षा करते हुए छोड़कर
चला गया, दूर, बहुत दूर

वह नहीं जानती थी कि मैं वापस नहीं आऊंगा

एक कुत्ता गुजरा, एक साध्वी गुजरी
एक सप्ताह और एक साल गुजर गया

बारिश ने मेरे पाँवों के निशान धो दिए
और गली में घास उग आई
और एक के बाद एक पत्थरों की तरह,
बेडौल पत्थरों की तरह बरस उसके सिर पर गिरते रहे

फिर खून के ज्वालामुखी की तरह
युद्ध शुरू हो गया
खत्म हो गए बच्चे और मकान

लेकिन वह स्त्री नहीं मर सकी

पूरे देश में आग फैल गई
सौम्य, पीतवदन ईश्‍वर
जो हजारों सालों से ध्यानस्थ थे
टुकड़े-टुकड़े कर मंदिर से फेंक दिए गए
वे और अधिक ध्यानस्थ न रह सके

प्यारे मकान, वह बरामदा
जिसमें रस्सी के झूले में सोया मैं
उज्ज्वल पौधे, अनेक हाथों के आकार की पत्तियाँ,
चिमनियाँ, वाद्ययंत्र
सब ध्वस्त कर दिए गए और जला दिए गए

जहाँ पूरा एक शहर था
अब वहाँ एक अधजला खण्डहर रह गया था
ऐंठे हुए सरिये, प्रतिमाओं के मृत बेढंगे सिर
और सूखे खून का काला धब्बा

और वह एक स्त्री जो अब भी प्रतीक्षा करती है।
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