सोमवार, 26 अगस्त 2019

लेखकों का दायित्व - बजरिए युवाल नोआ हरारी

इक्कीसवीं सदी के इक्कीस सबक
युवाल नोआ हरारी
(उपरोक्त पुस्तक की भूमिका के कुछ शब्दों पर आधारित, परिवर्धित नोट -कुमार अम्बुज)

बौद्धिकों, लेखकों और कवियों का दायित्व
अनावश्यक सूचनाओं की बाढ़ से  ग्रसित इस संसार में, दृष्टि की स्पष्टता ही एकमात्र ताकत हो सकती है। लेकिन एक स्पष्ट और तार्किक दृष्टि को लगातार बनाए रखना एक कठिन चुनौती है। 

हम करोड़ों लोगों में से अधिकांश अन्वेषण और जिज्ञासा की विलासिता को बर्दाश्त नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास तो पहले से रोजमर्रा के इतने सारे कामों का दबाब हैः  नौकरी या व्यवसाय की व्यस्तता, बच्चों की परवरिश या घर के बुजुर्गों की देखभाल की जवाबदारी। लेकिन दुर्भाग्य से इतिहास किसी को कोई छूट नहीं देता। 

यदि आपकी सक्रियता के अभाव में मानवता के लिए कोई निर्णय लिया जाएगा तो आप इसलिए नहीं बच जाएँगे कि आप बच्चों के पालन-पोषण या घर-परिवार में बहुत ही मशरूफ थे। आप कहेंगे कि यह तो अनुचित है, लेकिन यह आपसे किसने कहा कि इतिहास आपके मुताबिक होता है और अनुचित नहीं होता है?

यथार्थ या उसके सवाल कई धागों से मिलकर बनते हैं। इनके कोई सर्वस्वीकार्य उत्तर भी नहीं होते। आप केवल अपने पाठकों के लिए एक विमर्श और हमारे समय में उपलब्ध वैकल्पिक वैचारिक बहस की उत्प्रेरणा जरूर दे सकते हैं। मनुष्य की प्रज्ञा और मूढ़ता को रेखांकित कर सकते हैं। जैसेः 
कि आसपास घट रही घटनाओं के मूल में वास्तविक कारण क्या हो सकते हैं। 
कि जाली समाचारों की महामारी के बीच कैसे रहा जा सकता है। 
कि राष्ट्रवाद, असमानता और पर्यावरण की चुनौतियों को कैसे हल कर सकता है। 
कि व्यक्तिगत भी अंततः राजनैतिक है लेकिन इस युग में जब वैज्ञानिक, कार्पोरेशंस और सरकारें आदमी के मस्तिष्क पर ही कब्जा कर रही हैं, उसे अपने प्राधिकार में ले रही हैं,
तब क्या किया जा सकता है।

इस वैश्विक होते संसार ने लोगों के व्यक्तिगत आचरण, जीवन पद्धति और नैतिकता पर कई तरह के दबाब डाल दिए हैं। और अभी जब लग रहा था कि उदारवाद, साम्यवाद और फासीवाद के शीतयुद्ध में उदारवाद ने विजय प्राप्त कर ली है तब हम देख रहे हैं कि उदारवाद तो तमाम अवरोधों में फँस चुका है। 
तो हम किस तरफ बढ़ रहे हैंः निश्चित ही फासीवाद की तरफ। 

एक कवि लोगों को भोजन या कपड़े नहीं दे सकता लेकिन वह उस वैचारिकता और स्पष्ट दृष्टि को संप्रेषित कर सकता है ताकि लोग किसी वैश्विक विमर्श में चीजों को सही ढंग से समझ सकें। 
यदि कुछ लोग भी इस तरह लाभान्वित होते हैं तो कवि का काम पूरा हो जाता है।

तकनीक की उन्नति मनुष्यों को बड़ी संख्या में प्रतिस्थापित करते हुए एक नए वर्ग का निर्माण कर रही है। और वह वर्ग है -अनुपयोगी मनुष्यों का वर्ग। या कहें कि निकम्मा वर्ग।  

सोच-विचार करनेवालों का, बौद्धिकों, लेखकों और कवियों का दायित्व इस पृष्ठभूमि में स्वयमेव स्पष्ट है।
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