न बारिश और न ही तारों भरी रात।
न कविता, न कोई मनुष्य और न ही कामोद्दीपन।
संगीत से तुम कुछ आशा करते हो लेकिन थोड़ी देर में वह भी व्यर्थ हो जाता है।
शायद इसी स्थिति को सच्ची असहायता कहा जा सकता है।
2मुझे याद नहीं आता था कि वह कौन सा शब्द था। वह रोजमर्रा का ही कोई शब्द था।
आज सोने जाते समय, रात एक बजे वह अचानक कौंधा- ‘विषाद’।
हाँ, यही वह शब्द था जिसे मैं, अचरज है, कि किसी अविश्वसनीय बात की तरह, न जाने क्यों कुछ समय से भूला हुआ था। जबकि जीवन इसकी इजाज़त नहीं देता था।
जब आप कठिनाई या संकट में नहीं होते तो आशा की कोई जरूरत नहीं पड़ती।
जैसे ही कोई मुश्किल, विपदा, अवसाद या असंतोष पैदा होता है, आशा अपना काम करना शुरू कर देती है।
अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने, जो बीमारी की वजह से नोबेल पुरस्कार लेने स्वयं उपस्थित न हो सके थे, अपने संक्षिप्त धन्यवाद भाषण में लिख भेजा थाः ‘कोई भी लेखक जो ऐसे अनेक महान लेखकों को जानता हो, जिन्हें यह पुरस्कार नहीं मिल सका, इस पुरस्कार को केवल दीनता के साथ ही स्वीकार कर सकता है। ऐसे लेखकों की सूची देने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ प्रत्येक आदमी अपने ज्ञान और अंतर्विवेक से अपनी सूची बना सकता है।’
यह आत्म परीक्षण, लघुता भाव और विनम्रता हर भाषा के पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं में देखी जाना चाहिए क्योंकि प्रत्येक समय, हर भाषा के महत्वपूर्ण पुरस्कारों में, ऐसे श्रेष्ठ लेखकों की सूची किसी कोने में पड़ी हो सकती है, जिन्हें वे पुरस्कार कबके मिल जाने चाहिए थे। लेकिन हिंदी में हम देख सकते हैं कि जो पुरस्कार लेते हैं उनमें ढीठता और अहमन्यता ही कहीं अधिक प्रकट होती है।
दीनता की जगह गहरा संतोष।
दिमाग पर जोर डालकर कुछ सोचना न पड़ता हो।
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