छोटे से अंश का एक अनुवाद प्रस्तुत है, जिसने मुझे अपनी परिधि में ले लिया है।
मैं हमेशा महसूस करता हूं कि शब्द मेरे शरीर में से निकलकर आते हैं, महज दिमाग में से नहीं। मैं कलम से कागज पर इस तरह सामान्य लिपि में कुछ जोर से लिखता हूं कि कलम से कागज पर लिखे जाने की आवाज आती है। मैं शब्दों को लिखे जाने की आवाज सुनता हूं। गद्य लिखने और वाक्य बनाने के इस यत्न को मैं अपने मस्तिष्क में बज रहे संगीत की संगति में पकड़ता हूं। यह सब बहुत श्रमसाध्य है, लिखना, लिखना और पुनर्लेखन कि उस तरह संगीत को प्राप्त कर पाना जैसा कि आप चाहते हैं। यह संगीत एक भौतिक शक्ति है। आप न केवल किताबें भौतिक रूप से लिखते हैं बल्कि उन्हें पढ़ना भी भौतिक क्रिया ही है।
भाषा की लय कुछ ऐसी होती है कि वह हमारे अपने शरीर की लय से संगति बैठाती है। एक उत्सुक पाठक किताब में उन अर्थों की खोज करता है जिन्हें उच्चरित नहीं किया जा सकता, वह उन्हें अपने शरीर में ही खोजता है। मैं सोचता हूं कि अधिकांश लोग गद्यसाहित्य को लेकर यही नहीं समझ पाते हैं। कविता का सांगितिक होना माना ही जाता है लेकिन लोग गद्य को इस तरह नहीं समझते हैं। वे पत्रकारिता को पढ़ते हुए तथ्यात्मक,कामकाजी,सूचनात्मक वाक्यों के, सतही विन्यास और चीजों के बेहद आदी हो चुके होते हैं।
- पॉल ऑस्टर (उपन्यासकार) के साक्षात्कार का एक अंश
'द बिलीवर' पत्रिका के फरवरी 2005 के अंक से, साभार।
2 टिप्पणियां:
The Believer - Jonathan Lethem talks with Paul Auster
खूबसूरत। और आपसे अतिक्रमण में अपेक्षा संबंधी कविता की जमीन पर, एक प्रिय लेखक से उसके पाठक यह अपेक्षा करते हैं कि इस गांठ को सुलझाते हुए कुछ और शब्दों की लय पकडे।
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