पॉब्लो नेरुदा की 20 प्रेम कविताओं में से इस कविता के संसार में अनेक भाषाओं में अनगिन अनुवाद हुए हैं। हिन्दी में ही इसके कम से कम दस से अधिक अनुवाद किए गए हैं। इससे जाहिर है कि यह कविता अछोर व्यंजना, प्रेम, उदासी और हार्दिकता से भरी है। यह कविता बता सकती है कि कविता का अनुवाद नहीं, उसका पुनर्लेखन ही संभव होता है। बहरहाल।
सबसे उदास पंक्तियॉं
पाब्लो नेरुदा
आज की रात लिख सकता हूँ मैं सबसे उदास पंक्तियाँ।
लिख सकता जैसे- यह तारों भरी रात है
और तारे नीले हैं सुदूर और कांपते हैं।
रात की हवा चक्कर खाती है आसमान में और गाती है।
आज की रात मैं लिख सकता सबसे उदास पंक्तियाँ
मैंने उससे प्यार किया और कभी-कभी उसने भी मुझे प्यार किया।
ऐसी आज की तरह की रातों में वह मेरी बाहों में रही
मैंने उसे अनंत आकाश के नीचे बार-बार चूमा।
उसने मुझे प्यार किया, कभी-कभी मैंने भी उसे प्यार किया
आखिर कोई उसकी सुंदर निश्चल आखों को प्यार कैसे न करता।
आज की रात मैं लिख सकता सबसे उदास पंक्तियॉं
यह ख्याल करते हुए कि अब वह मेरे पास नहीं
यह सोचते हुए कि मैंने उसे खो दिया।
इस असीम रात को सुनते हुए, जो उसके बिना और असीम है
और कविता गिरती है आत्मा पर जैसे घास पर ओस।
क्या हुआ जो मेरा प्रेम उसे रोक नहीं पाया
यह तारों भरी रात है और वह मेरे साथ नहीं है।
बस। दूर कोई गा रहा है। बहुत दूर।
मेरी आत्मा बेचैन है कि वह मुझसे खो गयी।
मेरी निगाह उसे खोजती है कि उसे मैं पास ला सकूँ
मेरा हृदय उसके लिए विकल है, और वह मेरे साथ नहीं है।
वैसी ही रात उसी तरह, उन्हीं पेड़ों को चाँदनी का बना रही है
हम ही, जैसे थे, अब वैसे नहीं रह गए हैं।
तय है, अब मैं उसे प्यार नहीं करता, मगर मैंने उसे कितना प्यार किया।
मेरी आवाज उस हवा को खोजती है कि उसकी आवाज को छू सके।
किसी और की। वह किसी और की होगी।
जैसे पहले वह मेरे चुंबनों के लिए थी।
उसकी आवाज। उसकी उज्जवल देह। उसकी वे असीम आँखें।
सच है कि अब मैं उसे प्यार नहीं करता
पर मुमकिन है कि अब भी करता होऊँ
प्रेम इतना ही संक्षिप्त होता है और विस्मृति में इतना लंबा वक्त।
ऐसी ही रातों में भरता रहा मैं उसे बाहों में
मेरी आत्मा अशांत है कि उसे मैंने खो दिया।
मुमकिन है कि यह आखिरी वेदना है जो वह मुझे दे रही है
और मुमकिन है, ये आखिरी पंक्तियाँ हैं जो मैं उसके लिए लिख रहा हूँ । 00000
16 टिप्पणियां:
चाहे जितनी बार पढ़ लूँ ... इस का असर वही रहता है. आभार.
मूल व्यंजना का-सा रस देता भावानुवाद।
रचना तो खैर मार्मिक व सहज सम्प्रेषित है ही!
कितनी बार पढ़ा है। कितनी बार पढ़ता हूं। जब जब पढ़ता हूं, उदास होता हूं। आज, अभी फिर उदास हूं।
अनुवाद आपके रंग का है।
पाब्लो नेरुदा की कविताएं मुझे हमेशा से अच्छी लगती रही हैं। ये कविता भी बहुत प्यारी है।
सच है कि अब मैं उसे प्यार नहीं करता
पर मुमकिन है कि अब भी करता होऊँ..ye bharam kitna to bhalaa hai!!!
aabhaar aapkaa
Pyar mein kya udaasi aparihary hai. kya bichhudna hi pyaar ko pyaar banata hai...
Neruda ki kai kavitaon mein deh chhalak-chhalak padtee hai par ye kavita to bahut sadgi ke saath bahut sashakt hai
कथादेश में अविनाश जी के कालम से पता चला, आप भी ब्लाग लिख रहे हैं. आज देखा. बढि़या. अब विमर्श के और आयाम खुलेंगे.
Blog jagat me aapka swagat hai.
guptasandhya.blogspot.com
bahut achchhi kavita padhawane ke liye dhanyawad.
jab udaas hoti hoo kavita sath hoti hai
par is kavita ne hi udas kar diya
adbhut!
meri kavitaon ka blog dekhen.
www.asuvidha.blogspot.com
anuvaad me abhi vah feel nahi mahsoos hoti jo is kavita ki rooh me hai.
abhi tak ke ashok pandey, madhu sharma aadi sabke anuvaadon me yahi kami akharti hai.
mool kavita se hi is kavita ko feel kiya ja sakta hai.--om nishchal, Patna/ Delhi
अपने प्रिय युवा कवि को आज नेट पर देखकर मन को बहुत ही सुकून मिला । बधाई ।
कभी इधर भी भेज दें कुछ प्रसाद
जयप्रकाश मानस
www.srijangatha.com
Ek achchi kavita padhavane ke liye dhanyavad
aapne thik hi kaha ki yeh kavita achor vayanjana,prem,udasi aur hardikta se bhari hai...
Aapne thik hi kaha ki yeh kavita achor vayanjana,prem,udasi aur hardikta se bhri hai...
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