सोमवार, 1 अगस्त 2016

तुलसीदास की एक और संक्षिप्‍त लेकिन प्रभावी, प्रेमाभिव्‍यक्ति।

महाकवि तुलसीदास और गीतकार आनंद बक्षी


बात बहुत छोटी सी है लेकिन चालीस साल से मन में धँसी है।
''माय लव'' फिल्‍म का एक गीत है जिसे, एक अल्‍प चर्चित किंतु श्रेष्‍ठ संगीतकार दानसिंह के लिए, गीतकार आनंद बक्षी ने लिखा था और मुकेश ने गाया था। गीत खासा परिचित है- जिक्र होता है जब कयामत का, तेरे जलवों की बात होती है।
इस गीत का यह अंतरा पढें-
           'तुझको देखा है मेरी नजरों ने तेरी तारीफ हो मगर कैसे
           कि बने ये नजर जुबॉं कैसे, कि बने ये जुबॉं नजर कैसे
           न जुबॉं को दिखाई देता है, न निगाहों से बात होती है'

इस पूरी बात को जिसे लंबी पंक्तियों में आनंद बक्षी ने कहा हैउसे सीधे तुलसीदास से तो लिया ही गया है, मगर दृष्‍टव्‍य यह कि उस अभिव्‍यक्ति को तुलसीदास ने कितने सारगर्भित और काव्‍यात्‍मक ढंग से मात्र एक अर्धाली में रखा है -
रामचरितमानस, प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर, के बालकाण्‍ड के दोहा क्रमांक 228 के बाद की दूसरी चौपाई है, जब सीता की सखी राम-लक्ष्‍मण की सुंदरता का बखान करने में अपनी असमर्थता इन शब्‍दों में बता रही है-
            ''गिरा अनयन नयन बिनु बानी।''
अर्थात- गिरा यानी जिह्वा/वाणी के पास नेत्र नहीं हैं और नेत्रों के पास बाणी नहीं है।

चौपाई की इस अंतिम अर्धाली को, आनंद बक्षी गीत के अंतरे की दो-तीन पंक्तियों में लिखते हैं। तुलसीदास इस अभिव्‍यक्ति को आधी पंक्ति में दर्ज कर देते हैं।

बस, यह एक छोटा सा ध्‍यानाकर्षण है।
तुलसीदास की यह एक और संक्षिप्‍त लेकिन प्रभावी, प्रेमाभिव्‍यक्ति तो है ही।
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