शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

एक स्‍त्री मेरा इं‍तजार करती है

अमेरिकी कवि वॉल्‍ट व्हिटमैन ने अपने जीवनकाल में कुल एक ही कविता संग्रह 'लीव्‍ज ऑव ग्रास' प्रकाशित कराया और इसे ही वे जीवन भर अद्यतन करते रहे।
प्रस्‍तुत कविता दैहिकता से शुरू होकर गहरी सामाजिकता में बदलती जाती है। इसमें स्‍त्रीवाद के वे सूत्र भी देखे जा सकते हैं, जो आगे जाकर समाजशास्त्रियों और विचारकों ने विकसित किए। इसमें वे अग्रगामी स्त्रियों की कामना करते हैं और उस गुणधर्म को संतत‍ि की नयी पीढि्यों में देखना चाहते हैं।
इसे कुछ हद तक विडम्‍बना कह सकते हैं कि अमेरिकी राजनैतिक संततियॉं उतनी उदात्‍त और मानवीय नहीं हो सकीं, जितनी एक कवि की आकांक्षा में रहती हैं। इस कविता में अनेक विमर्श विन्‍यस्‍त हैं।
- कुमार अंबुज

एक स्‍त्री मेरा इंतजार करती है

वॉल्‍ट व्हिटमैन

एक स्त्री मेरा इंतजार करती है, वह हर तरह से परिपूर्ण है,
उसमें कुछ भी कमी नहीं है
लेकिन सब कुछ व्यर्थ है यदि वहाँ रति नहीं
सब कुछ की कमी है यदि उसके पास एक सच्चे पुरुष की नमी नहीं।

रति में सब कुछ समाया है, शरीर, आत्माऍं,
अर्थ, प्रमाण, पवित्रताऍं, कोमलताऍं, परिणाम, घोषणाएँ,
गीत, आज्ञाएँ, स्वास्थ्य, गौरव, मातृात्मक रहस्य, वीर्य
संसार की सभी आशाएँ, परोपकार, तोहफे, वासनाएँ, प्रेम,
सुंदरताएँ, प्रसन्नताएँ,
दुनिया की सभी सरकारें, न्यायाधीश, ईश्वर, आगत मनुष्य
ये सब शामिल हैं रति में
उसके अपने अंश की तरह और अपने ही औचित्य की तरह।

जो मुझे पसंद है, वह पुरुष जानता है और बेझिझक स्वीकारता है
अपनी रति का स्वाद
वह स्त्री भी, जो मुझे पसंद है, जानती है और स्वीकार करती है।

अब मैं नहीं जाऊँगा उत्साहहीन स्त्रियों के पास
मैं उस स्त्री के पास जाऊँगा और रहूँगा जो मेरी प्रतीक्षा करती है
और उन स्त्रियों के पास जो मेरे लिए पर्याप्त ऊष्ण हैं
मैं समझता हूँ कि वे मुझे समझेंगी और मुझे इनकार नहीं करेंगी
मैं देखूँगा कि वे मेरे लायक हैं, मैं उनका बलिष्ठ पति साबित होऊँगा।

वे मुझसे जरा भी कम नहीं होंगी
उनके चेहरे तेज धूप और हवाओं से ताँबई होंगे
उनके शरीर में प्राचीन दैवीय कोमलता और ताकत होगी
वे तैरना जानती होंगी और नाव खेना, घुड़सवारी, कुश्ती, निशानेबाजी,
दौड़ना, वार करना, बचना, आगे बढ़ना, प्रतिरोध करना,
अपनी रक्षा करना जानती होंगी
वे शांत, स्पष्ट, आत्मनियंत्रित होंगी- अपने आप में संपूर्ण।

स्त्री, तुम्हें मैं अपने करीब खींचता हूँ
मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा, तुम्हारे लिए मैं अच्छा करूँगा,
मैं तुम्हारे लिए हूँ, तुम हो मेरे लिए, केवल हमारी अपनी खातिर नहीं,
शेष सभी की खातिर
तुम्हारे भीतर सोए हुए हैं महान नायक और कवि,
जो किसी पुरुष के स्पर्श से नहीं जागेंगे, सिवाय मेरे।

यह मैं हूँ, ऐ स्त्री, मैं अपनी राह बनाता हूँ,
मैं दृढ़ हूँ, कठोर हूँ , बड़ा हूँ, अडिग हूँ लेकिन तुम्हें प्यार करता हूँ ,
मैं तुम्हें उससे ज्यादा चोट नहीं पहुँचाऊँगा जितनी तुम्हारे लिए जरूरी है
मैं अपना सत् उँडेलता हूँ कि इन राष्ट्रों के लिए
उपयुक्त बेटे और बेटियाँ मिल सकें
मैं धीमे से, सख्त माँसपेशी से तुम्हें दबाता हूँ
निर्णायक ढंग से आबद्ध होता हूँ, मैं कोई अनुनय नहीं सुनूँगा,
मैं तब तक अलग नहीं होऊँगा जब तक कि अपने भीतर
जो कुछ लंबे समय से संचित है, उसे तुम्हें सौंप नहीं दूँगा।

तुम्हारे जरिये मैं अपनी रुकी हुयी नदियों को रिक्त करता हूँ
तुम्हें मैं आनेवाले हजारों वर्षों से आच्छादित करता हूँ
तुममें मैं अपनी सर्वाधिक प्रिय और अमेरिका की कलमों को रोपता हूँ
जो बूँदें मैं तुममें सींचता हूँ वे लड़ाकू और कसरती लड़कियों में बदलेंगी,
नये कलाकारों में, संगीतकारों और गायकों में बदलेंगी,
जो संततियाँ मैं तुम्हें दूँगा वे भी संततियाँ पैदा करेंगी
मैं अपने संसर्ग से पूर्ण पुरुषों और पूर्ण स्त्रियों की चाह रखता हूँ
मैं उनसे अपेक्षा करूँगा कि वे भी एक-दूसरे में अंत:प्रवेश करें
जैसे तुम और मैं अभी एक-दूसरे के भीतर तक प्रवेश कर रहे हैं
मैं उन फलों की आशा करता हूँ जो उनकी तेज बौछारों से प्रकट होंगे
जैसे अभी मैं आश्वस्त हूँ उन फलों के लिए
जो इन प्रवाही धाराओं से फलेंगे जिन्हें मैं तुम पर न्यौछावर करता हूँ।

मैं आगत प्यारी फसल की
जन्म, जीवन, मृत्यु और अनश्वरता में प्रतीक्षा करता हूँ ,
जिसे मैं इतने प्रेम से यहाँ रोपता हूँ।
00000

8 टिप्‍पणियां:

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

बेहतरीन कविता - बेहतरीन अनुवाद !

विधुल्लता ने कहा…

unhone ye bhi kaha tha,ki kisi bhi jati ka sabse bada saboot uski apni kavita hai,us jati main kavita ki upasthiti ya uska abhaav dono ki apni kahani hoti hai....aur bhi bahut kuch,is blog ki is varsh ki ye vastav main ek khubsoorat kavita hai,anek badhai

विधुल्लता ने कहा…

unhone ye bhi kaha tha,ki kisi bhi jati ka sabse bada saboot uski apni kavita hai,us jati main kavita ki upasthiti ya uska abhaav dono ki apni kahani hoti..kisi desh ko puran aur mahaan ki upadhi us samay tak nahi di jani chahiye jab tak wo apne aadersh aur udheshy ko shreshth aur moulik kavita dawara vayakt nahi karta. ...,is blog ki is varsh ki ye vastav main ek khubsoorat kavita hai,anek badhai

जितेन्द़ भगत ने कहा…

बढ़ि‍या।
(आपकी कवि‍ता 'कि‍वाड़' 6 साल पहले पढ़ा था, पढ़कर मन खुश हो गया था। कभी इस कवि‍ता को ब्‍लाग पर प्रकाशि‍त करें तो आनंद दुगुना हो जाएगा।)

Unknown ने कहा…

कुमार अम्बुज जी आपकी ये कविता पढ़ना मेरे लिए हर्ष का विषय है । कितनी सुन्दर कल्पानएं , भाव और सुन्दर शब्द बहुत प्रभावित कर रहें है । ब्लाग पर एक नयी कविता है जो अपना प्रतिनिधित्व स्वयं करती है । धन्यवाद

ravindra vyas ने कहा…

इसे यहां पढ़कर भी मजा आया।

varsha ने कहा…

bahut gahri aur badi kavita...

अजेय ने कहा…

तो ये थे िव्हटमेन! यह कविता पहली बार पढ़ रहा हूँ , और इन्हें इस तरह से जानना बहुत सुखद है।
mujhe apni kavita yaad aayee

हम ब्यँूस की टहनियाँ है
रूखे पहाड़ों पर रोप दी गई
छोड़ दी गई हैं मौसम के सुपुर्द
लम्बी सदिZयों में हमारी त्वचा काली पड़ जाती है
मूच्छिZत, खड़ी रह जाती हैं हम
अर्द्ध निद्रा में
और मौसम खुलते ही
हम पत्थरों से चूस लेती हैं
जल्दी-जल्दी
खनिज और पानी ।
mere man me whit man ki kuchh Bhinn Chhavi thee.....thanks
AJEY