गुरुवार, 7 नवंबर 2019

ओल्गा तोकारचुक


''बिखरे हुए खिलौनों के बीच, खिड़की के पास, अँधेरे में, ठंडे कमरे में बैठी एक बच्ची।''
''यह वायदा है कि शायद हम अब सही समय और सही जगह पर नया जन्म लेंगे।"

ये ओल्गा तोकारचुक के उपन्‍यास 'फ्लाइट्स' के पहले और अंतिम दो वाक्‍य हैं, जिनके बीच विस्‍मयकारी, यथार्थ और कल्पनाशीलता के बीच संपन्नतादायक यायावरी है। वे इस सफर के जरिये बड़ा विमर्श संभव करती हैं। और धरती-आकाश को एक वैश्विक, जीवंत रंगमंच बना देती हैं। शुरुआत में बिंबात्मक वाक्य उभरता है:
                    ''अँधेरा: जैसे काली ओस की तरह आकाश से गिरकर हर चीज पर जमा हो रहा है।''                           इसे इधर के समय का रूपक भी माना जा सकता है।

'फ्लाइट्स' की घुमक्‍कड़ी को शताधिक छोटे-छोटे प्रसंगों और अध्यायों में लिखा गया है। संरचना दिलचस्प है और इसलिए पठनीयता भी। इस यात्रा में यायावर, जैसे अजनबियों की दयालुता और सहयोग पर निर्भर हैं, यह सफर अनजानी आशा और पारस्परिकता के विश्वास से आगे बढ़ता है। संगीतकार शोपाँ के हृदय की भी यात्रा इसमें शामिल है। वे एक मिथ को तोड़़ते हुए दर्ज करती हैं कि शोपाँ के अंतिम शब्द किसी प्रसन्नता के बारे में नहीं थे बल्कि जो उनके मुँह से आखिरी चीज निकली वह गाढ़ा, काला खून था। फिर वे मर गए। बाद में तो दिल की एक राहगीरी बचती है। लंबी, अनंत, कालावधि और दिक़ को लाँघती हुई। घर, पृथ्वी, दैहिकता, नश्वरता, समय और नक्षत्रों को समाहित करती, उसके पार जाती, आकाशंगगा को अपने रास्ते में लेती, एक साथ लौकिक और अलौकिेक खगो‍लीय यात्रा। एक विशाल तारामंडल भी साथ में है जिसमें मनुष्य ही नहीं, उसके तमाम अंग, अवयव, संत्रास और आकांक्षाएँ सहयात्री हैं।
अपने देश के संस्कृति मंत्री के इस वक्तव्य पर कि अब वे ओल्गा की किताबें पढ़ेंगे, ओल्गा दिलचस्प और ध्यातव्य बातें कहती हैं: 'मेरी किताबें हर किसी के लिए उपयुक्त नहीं भी हो सकतीं। मैं लोगों का दिमाग खोलने, उसे विस्तृत करने के लिए लिखती हूँ, मैं सीधे कोई राजनैतिक लेखन नहीं करती क्योंकि मैं कोई राजनैतिक माँगें पेश नहीं करती, जीवन के बारे में लिखती हूँ लेकिन जैसे ही आप मनुष्य की जिंदगी के बारे में लिखते हैं, उसमें राजनीति आ ही जाती है।'
वे अपने देश पौलेण्ड के ऐतिहासिक अपराधों की भी या‍ददिलाही कराती हैं, 'मृतकों की हड्डियों पर तुम्‍हारा हल चलाओ', उपन्यास यही सब कहना चाहता है। यहाँ इस विडंबना की याद कर सकते हैं कि हमारे देश में आज किसी लेखक का ऐसा सब कहना कितना मुश्किल बनाया जा रहा है।
वे अपने देश के अँधेरे काल को विस्मृत नहीं कर देना चाहतीं, उस पर बहस चाहती हैं, उससे सबक चाहती हैं। किसी भी झूठे गौरव को परे हटाकर वे थोथे राष्ट्रवाद के खिलाफ अपना प्रबल पक्ष रखती हैं। मनुष्य की तमाम यातनाओं, हौसलों और विस्थापन को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखती हैं। उनके लेखन की विशिष्टताओं में से यह एक चीज है।
शरीर संरचना विज्ञान कहता है कि मानव शरीर में सारटोरियस सबसे लंबी, ताकतवार माँसपेशी है, इसके बरअक्स ओल्गा का कहना है कि जीभ ही मनुष्य की माँसपेशियों में सबसे अधिक शक्तिशाली है। पुरस्कृत उपन्यास के एक संक्षिप्त अध्याय को वे 'बोलने' की जरूरत और महत्व पर केंद्रित करती हैं। बोलो-बोलो। बिना बोले कुछ नहीं हो सकता। जाहिर है इस बोलने में दूसरे का बोला हुआ सुनना भी शामिल है। यह संवाद और अभिव्यक्ति की ताकत रेखांकित करना है।
वे एक्टिविस्‍ट भी हैं। और प्रतिपक्ष की सहज भूमिका में हैं। खासतौर पर नारीवादी अधिकारों को लेकर। अपने इस बोलने और लिखने की वजह से वे लगातार राष्‍ट्रवादियों के और जुझारू देशभक्तों के निशाने पर रहती हैं लेकिन ओल्गा तोकारचुक का निशाना कहीं अधिक सटीक साबित होता है। संसार भर में लेखकों की यही स्थिति और सद्गति है। लेखक होना और बने रहना इसी तरह मुमकिन है।
अपने लेखन में वे परिकथाओं, लोककथाओं, कल्‍पनाओं, परिकल्पनाओं, मिथकों, विज्ञान, आशाओं, इच्छाओं, संस्मरण और इतिहास को एक साथ लेकर चलती हैं। यह नये संसार की चाहत है। वे अपने लेखन से पाठकों के दिमाग में बाजिव किस्‍म का संदेह पैदा करना चाहती हैं, वैचारिक उत्तेजना देना चाहती हैं। साहित्य का यही सच्चा मकसद भी है। 'फ्लाइट्स' के एक और चैप्‍टर में वे कहती हैं कि इस दुनिया को चिड़िया की आँख से देखने में और मेंढ़क की आँख से देखने में फर्क आ जाता है। लेखक को अपनी निगाह साफ और कुछ ऊँचाई पर रखना चाहिए।
उनको जब नोबेल पुरस्कार की सूचना मिली, वे जर्मनी की तरफ कार से सफर कर रही थीं। यह उनकी साहित्यिक यात्रा और 'फ्लाइट्स' की यायावरी का भी एक बिंब बन जाता है। उपन्यास के दो अध्याय- 'मैं यहाँ हूँ' और 'यहाँ हूँ मैं' के नाम से वे अपनी उपस्थिति मानो किसी यात्रा में घोषित करना चाहती हैं।
वे सचमुच यात्री हैं।
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[ओल्गा के 2007 में प्रकाशित इस 'फ्लाइट्स' उपन्यास को, अंग्रेजी अनुवाद के बाद 2018 में मैन बुकर पुरस्कार मिला था और इसी उपन्यास को मुख्‍य आधार बनाकर अभी 2018 का नोबेल पुरस्कार मिला है।
मैन बुकर पुरस्कार जीतनेवाली वे पहली पोलिश लेखक हैं। इस क्रम में याद कर लें कि 'फ्लाइट्स' पर ही उन्हें पौलेण्ड के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार 'नाईके' से सम्मानित किया गया था।
ऑस्ट्रियाई पीटर हैंडके 2019 के नोबेल विजेता हैं, जो एक नरसंहार के मामले में अपने बयान के कारण विवादास्पद रहे, उनकी तुलना में ओल्गा तोकारचुक का नाम अधिक स्वीकृतिपूर्वक ग्रहण किया गया है। वे पौलेण्ड से साहित्य में नोबेल पुरस्कार की छठवीं विजेता हैं।
इस बार स्वीडिश अकादेमी की घोषित इच्छाओं में से एक पूरी होती है: महिला लेखकों पर ध्यान दिया जाएगा। दूसरी घोषणा पर अमल प्रतीक्षित रहेगा : इसे कुछ कम यूरोप केंद्रित ('यूरो‍सेंट्रिक') रखा जाए।]


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