लेखक
जो रोशनी और उम्मीद अपनी रचनाओं से पैदा करते हैं,
वही कुछ हद तक अपने
जीवन व्यवहार से भी कर सकें।
जहाँ
मैं रहता हूँ वहाँ नौकरी व्यापार के अलावा
और कहाँ और क्या करता हूँ काम
कौन हैं वे लोग जिनसे करता हूँ प्रेम और किनसे नफरत
अजनबियों को देखता हूँ किस तरह
किन जगहों पर आता-जाता हूँ गाता-बजाता हूँ
सब्जी-फल बेचनेवालों को कबाड़ियों मनिहारीवालों
लोहकूटों कामवाली बाइयों को किस हद तक समझता हूँ चोर
बगल से गुजरते जुलूस में कितना होता हूँ शामिल
और कहाँ और क्या करता हूँ काम
कौन हैं वे लोग जिनसे करता हूँ प्रेम और किनसे नफरत
अजनबियों को देखता हूँ किस तरह
किन जगहों पर आता-जाता हूँ गाता-बजाता हूँ
सब्जी-फल बेचनेवालों को कबाड़ियों मनिहारीवालों
लोहकूटों कामवाली बाइयों को किस हद तक समझता हूँ चोर
बगल से गुजरते जुलूस में कितना होता हूँ शामिल
अमीरी
को देखता हूँ किस तरह और भिखारियों को किस तरह
साँतिए को टोटका समझता हूँ कि कला में एक परंपरा
घर में मेरी उपस्थिति मेरा हस्तक्षेप मेरी सक्रियता
शयनकक्ष के अलावा और कहाँ है
जब हत्या का समाचार पढ़ता हूँ तो कितनी देर बाद
पी लेता हूँ शरबत और कितनी देर बाद लग आती है भूख
साँतिए को टोटका समझता हूँ कि कला में एक परंपरा
घर में मेरी उपस्थिति मेरा हस्तक्षेप मेरी सक्रियता
शयनकक्ष के अलावा और कहाँ है
जब हत्या का समाचार पढ़ता हूँ तो कितनी देर बाद
पी लेता हूँ शरबत और कितनी देर बाद लग आती है भूख
क्या
गाहे-बगाहे अब भी स्मृतियों में चला आता है बचपन
कलेजे को चीरता शैलेन्द्र का वह गीत और पड़ोसियों का प्यार
और क्या याद है अब भी एक विधर्मी की वह छोटी-सी बच्ची
जिसे देखकर पच्चीस साल पहले आया था ख्याल
कि काश, ऐसी ही बिटिया मेरे घर में भी हो
कलेजे को चीरता शैलेन्द्र का वह गीत और पड़ोसियों का प्यार
और क्या याद है अब भी एक विधर्मी की वह छोटी-सी बच्ची
जिसे देखकर पच्चीस साल पहले आया था ख्याल
कि काश, ऐसी ही बिटिया मेरे घर में भी हो
चमक-दमक
को देखकर किस कदर होता हूँ दीवाना
अपने ऊपर बीतती है तब या जब दिखता है लालच का लट्टू
तो हाथ से छूट तो नहीं जाता विचारधारा का दीपक।
अपने ऊपर बीतती है तब या जब दिखता है लालच का लट्टू
तो हाथ से छूट तो नहीं जाता विचारधारा का दीपक।
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